भाई सूबेदार मोहर सिंह के प्रेरित करने पर 1960 में सेना में सिपाही पद पर भर्ती हो गए, तृतीय राजपूत रेंजीमेंट में रहे। सिपाही रहते 1962 का युद्ध लड़ा। इसी बीच कमीशन के माध्यम से लेफ्टिनेंट बन गए। पेनियर कोर में मेजर के रूप में सीइओ की तरह काम किया। 1971 के युद्ध में भाग लिया। बाद में नेपाल सीमा के पास भी सेवाएं दीं। कर्नल के रूप में 1994 में सेवा पूरी की। उसी समय अपनी पत्नी रेशम को सरपंच बनवाया।
उनका एक बेटा कर्नल रहा और दूसरा मेजर जनरल है, छोटे बेटे ने आइआइटी से पढ़ाई पूरी की। 2001 में मैं, कर्नल व कैप्टन हरप्रसाद समाज को आरक्षण के बारे में जागरुक करने में जुट गए। हमारा उददेश्य समाज को शिक्षित करना था।
गुर्जर समाज को अनूसूचित जनजाति आरक्षण की मांग उठाई। समाज के लोगों का जुड़ाव देखने के लिए 2006 में रेल रोको आंदोलन की घोषणा की। लोग जुडते गए और पाटोली व पीलू का पुरा में आंदोलन किया। पाटोली आंदोलन के समय हमको तलाशा जा रहा था, तब देवलेन से किसान बुग्गी में बैठाकर कंबल ओढ़ाकर पाटोली के पास टुडावली तक पहुंचाया।
राजनेताओं व कुछ उपद्रवियों ने आंदोलन का लाभ लेने का प्रयास किया। समाज के नेताओं का लाभ नहीं मिला, फिर भी 5 प्रतिशत आरक्षण दिलाया। कर्नल कभी नहीं चाहते थे कि आंदोलन हिंसक हो, लेकिन प्रशासन के गोली चलाने से लोग उग्र हुए। लंबा आंदोलन किया, लेकिन कर्नल कभी न मायूस हुए और न ही कभी कोई फिक्र की।
कर्नल इस आंदोलन तक ही सीमित न रहे, उन्होंने किसानों को पांचना बांध के पानी में हक दिलाने के लिए भी आंदोलन किया। सरकार को सुझाया कि चंबल का पानी लिफ्ट करके पांचना बांध तक लाया जाए। कर्नल अभी गुर्जर रेजीमेंट के एजेंडे पर काम कर रहे थे, जिससे बेरोजगार हिंदू गुर्जरों को रोजगार मिलता और कश्मीर में आंतकवाद से जुड़ रहे मुस्लिम गर्जरों को रोजगार के जरिए मुख्यधारा में लाने की सोच थी। उनकी इस सोच को अब आगे बढ़ाएंगे।
( जैसा कि वर्ष 2000 से कर्नल किरोडी सिंह बैंसला के साथी रहे कैप्टन जगराम ने राजस्थान पत्रिका को बताया )