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इंसानी लालच ने छीना मां बनने का सुख, डेढ़ दशक से इस गांव में एक भी नहीं हुई गर्भवती

locationजयपुरPublished: Jul 23, 2019 03:06:23 pm

Submitted by:

Deepshikha Vashista

राजधानी जयपुर के एक गांव का है मामला, सरकार और जिम्मेदार पूरी तरह अंजान, वातावरण को बनाया बहाना
 
 

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इंसानी लालच ने छीना मां बनने का सुख, डेढ़ दशक से इस गांव में एक भी नहीं हुई गर्भवती

देवेंद्र सिंह राठौड़ / जयपुर. राजे-रजवाड़े के दौर से चली आ रही हाथी की सवारी ने भले गुलाबीनगरी की शान-शौकत में चार चांद लगाए है। लेकिन इन बेजुंबा हथनियों का दर्द कोई नहीं समझ पाया। यहां तक कि इनसे ‘मां’ बनने का हक भी छीन लिया। हैरत की बात हैं कि इस दर्द से सरकार और जिम्मेदार पूरी तरह अंजान है। यहीं अनजानापन हथनियों की क्रूरता का कारण बन गया।
राजधानी में करीब सवा सौ हाथी है। इनके लिए अलग से हाथी गांव ( Jaipur hathi village ) भी बसाया गया। इसके बावजूद भी करीब डेढ़ दशक बाद भी यहां अभी तक एक भी हथिनी गर्भवती नहीं हुई। देखा जाए तो, इंसानी लालच ने हथनियों पर सवारी का ऐसा बोझ डाल दिया कि उन्हें कभी प्रजनन का समय ही नहीं मिला। बरसों बाद भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दें रहा।
इस क्रूरता के पीछे हाथी मालिकों और वनाधिकारियों सबसे बड़ा कारण जयपुर की जलवायु को माना रहे है। उनके मुताबिक यहां का मौसम गर्म है। इसमें आद्रता भी कम है। साथ ही हाथी गांव में पानी की कमी। ऐसे में इन विकट परिस्थतियों में प्रजनन मुश्किल है।
जिम्मेदार बेपरवाह

जानकारी के मुताबिक हाथी गांव में हाथियों के विकास के लिए हाथी गांव विकास कोष, हाथी गांव कल्याण कोष बने हुए है। इनमें सोसायटी में हाथी मालिक और वन विभाग के उच्च अधिकारी भी शामिल है। इनमें हाथी सवारी के दौरान विकास शुल्क के नाम पर काटा गया फंड जमा होता है। हर साल इसमें लाखों रुपए विकास के नाम पर जमा होते है।
जिम्मेदार चाहे तो इस फंड और सरकारी मदद से हथनियों के प्रजनन के लिए अनुकूल प्रतिस्थितियां भी डवलप की जा सकती है। फिर भी जिम्मेदार बेपरवाह है।

100 साल में कभी नहीं देखा

70 वर्षीय एक हाथी मालिक राशिद बताया कि मेरे पिता-दादा राजे-रजवाड़े के दौर में दरबार के यहां हाथी की देखभाल का जिम्मा संभालते थे। रजवाड़े जाने के बाद मैंने हाथी रखना शुरू कर दिया। यह सच हैं कि, 100 साल में यहां एक भी हथिनी गर्भवती नहीं हुई। हमने भी कई बार प्रयास भी किए लेकिन विफल रहे।

ढाई साल तक सवारी बैन

सूत्रों ने बताया कि हथिनी गर्भवती होने के बाद से बच्चे पैदा होने तक करीब ढाई साल का समय लग जाता है। इस बीच उस हथिनी से सवारी भी नहीं करा सकते। ऐसे में कमाई का लालच भी एक बहाना है। हाथी गांव में हाथियों की देखरेख कर रहे वन्यजीव चिकित्सक नीरज शुक्ला ने बताया कि एक हथिनी का प्रजनन काल करीब 21 महीने का होता है। बच्चा पैदा होने के बाद तक वह स्वस्थ हो पाती है। तब तक हथिनी से सवारी नहीं करवाई जा सकती है।

बाहर से आईं गर्भवती हथिनियां

सूत्रों के मुताबिक 2001 मेें पहली बार एक हथिनी ने एक बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद 2003 में दूसरा और 2007 में तीसरे बच्चे को जन्म दिया। यह तीनों ही हथिनियां बाहर से गर्भवती होकर आईं थीं। वर्तमान में यहां अव्यस्क हाथियों में हथिनी सुमन (6 वर्ष), गौरी (13 वर्ष) और सुमन (17 वर्ष) है।
फैक्ट फाइल

-109 हाथियों की संख्या
-04 नर हाथी
-105 मादा हाथी
-हाथी कराते सवारी। (वन विभाग के मुताबिक आंकड़े)

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