(Rajasthan Highcourt) हाईकोर्ट ने एक (mentally retarted) मानसिक दिव्यांग युवती से (Rape) दुष्कर्म करने वाले अभियुक्त दिलीप गर्ग की (bail cancel) जमानत रद्द कर दी है और ट्रायल कोर्ट को अभियुक्त को गिरफ्तार करवाकर मुकदमे की प्रक्रिया आगे बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस पंकज भंडारी ने यह आदेश संजय पारवानी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिए।
एडवोकेट श्वेता पारीक ने बताया कि अभियुक्त दिलीप गर्ग को पड़ोस में रहने वाली युवती से दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किया था। ट्रायल कोर्ट ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था लेकिन,हाईकोर्ट ने 9 जुलाई,2018 को उसे जमानत दे दी थी। इस पर याचिकाकर्ता ने उसकी जमानत रद्द करने को याचिका दायर की थी। कोर्ट को बताया गया कि 26 साल की पीडि़ता की मानसिक आयु मात्र सात साल की है और यह तथ्य दिसंबर 2017 तथा जनवरी 2018 की डॉक्टर की पर्चियों से साबित है। पड़ोसी होने के नाते अभियुक्त को पीडि़ता की मानसिक हालत की पूरी जानकारी थी और इसी का फायदा उठाकर उसने दुष्कर्म किया था। मानसिक रुप से दिव्यांग होने और आईक्यू लेवल कम होने के बावजूद पीडि़ता ने कोर्ट में अभियुक्त पर दुष्कर्म के आरोप की पुष्टि की है। अभियुक्त की ओर से जमानत रद्द करने के विरोधी में दलील थी कि हाईकोर्ट अपने ही आदेश को रिव्यू नहीं कर सकता और एफआईआर में पीडि़ता के मानसिक दिव्यांगता का तथ्य नहीं है।
न्याय के लिए जरुरी है…
कोर्ट ने आदेश ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा-439 (2) में जमानत रद्द करने का प्रावधान है। लेकिन,कारण नहीं बताए हैं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में जमानत निरस्तगी के कारण बताए गए हैं। इन फैसलों में भी कारण विस्तार से नहीं हैं बल्कि उदाहरण के तौर पर बताए हैं। पीडि़ता की मानसिक आयु का खुलासा अदालत में नहीं किया गया था। पीडि़ता अपनी मानसिक स्थिति के कारण सहमति देने की हालत में नहीं है। अभियुक्त की मेडिकल रिपोर्ट से साबित है कि वह दुष्कर्म करने में सक्षम है। पीडि़ता के साथ न्याय करने के लिए जमानत रद्द करना आवश्यक है। अदालत ने अभियुक्त की जमातन रद्द करते हुए ट्रायल कोर्ट को उसे गिरफ्तार करवाने और मुकदमे की कार्रवाई आगे बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।