करीब 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी वाले प्रदेश में मौजूदा जनसंख्या के आधार पर करीब 500 नवजात शिशु रोग इकाइयों की जरूरत है, लेकिन इनकी संख्या अब भी करीब 60 ही हैं। इनमें भी निचले स्तर के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर तो यह संख्या करीब 20 बताई जा रही है। करीब 3200 प्राथमिक स्तर के अस्पतालों में से भी 2 हजार में ही प्रसव की सुविधा उपलब्ध है। अनुमानित 3 हजार स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों की जरूरत वाले प्रदेश में अभी 1100 ही उपलब्ध हैं। इनमें भी 80 प्रतिशत बड़े शहरों में ही हैं।
संसाधन बढ़े तो तेजी से होगी मृत्यु दर में गिरावट स्वास्थ्य के विभिन्न सर्वे के मुताबिक प्रदेश में सालाना होने वाली नवजात शिशुओं की मौत के कारणों में परिवहन सुविधाओं, उचित नवजात शिशु इकाइयों और विशेषज्ञों की कमी नवजात की मौत के अन्य कारणों में शामिल है। हालांकि कुछ राहत यह है कि इस दौरान शिशु मृत्यु दर में करीब 50 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। जो दर पहले 60 के आस पास थी, वह अब 30 के करीब है। इसमें भी बड़ा कारण लोगों में बढ़ती जागरूकता और अधिकांश प्रसव बड़े शहरों के अस्पतालों में होना भी माना जा रहा है। संसाधनों की कमी पूरी करने पर ध्यान दिए जाने पर इस दर में और कमी आ सकती है। स्थिति यह है कि अपने गांव के आस पास सभी सुविधाएं नहीं होने से आज भी 45 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं प्रसव से पहले सभी जांचें नहीं कराती, वे अपनी जांच को टालती रहती हैं।
एक्सपर्ट कमेंट कई तरह की स्वास्थ्य योजनाओं से पहले से सुधार तो काफी आया है, लेकिन शिक्षा में कमी और दूरदराज के गांवों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलने के कारण गर्भवती समय पर सभी जांचें कराने के बजाय टालती रहती हैं। परिवहन सुविधाओं की कमी भी इनके लिए बाधा बनती है। ये सोचती हैं कि जब सेंटर पर जाएंगे तब जांच करा लेंगे। संक्रमण, कुपोषण इस कारण बढ़ते रहते हैं।
डॉ.विमला जैन, पूर्व अधीक्षक, महिला चिकित्सालय, सांगानेरी गेट
डॉ.विमला जैन, पूर्व अधीक्षक, महिला चिकित्सालय, सांगानेरी गेट