अरविंद शर्मा और बादल वर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका में मुख्य सचिव, कार्मिक सचिव, किरोड़ी सिंह बैंसला एवं हिम्मत सिंह गुर्जर को पक्षकार बनाया है। चाचिका में कहा गया है कि 5 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के कारण प्रदेश में कुल आरक्षण का आंकड़ा 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है, जिस कारण पहले भी हाईकोर्ट इस तरह के आरक्षण को रद्द कर चुका है। अधिवक्ता अभिनव शर्मा ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा गुर्जर सहित अन्य जातियों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए राज्य में आपात परिस्थितियों को हवाला दिया है, जबकि राज्य में ऐसी कोई विषम परिस्थितियां ही नहीं थीं। गुर्जर आंदोलन कर रहे थे और राज्य सरकार ने मजबूरी में उन्हें आरक्षण दिया है।
हाईकोर्ट ने 50 प्रतिशत की सीलिंग से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा रखी थी और ऐसे में एक प्रतिशत आरक्षण ही देय था और वह दिया भी जा रहा था, लेकिन राज्य सरकार ने राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम- 2019 में गुर्जर सहित पांच जातियों को पांच प्रतिशत आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात का हवाला देकर दिया है, जबकि संविधान के अनुसार जनगणना के आधार पर आरक्षण देय नहीं है। संविधान में शैक्षणिक व सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की है, लेकिन नए संशोधन एक्ट में इसे ध्यान में रखे बिना ही एमबीसी वर्ग में गुर्जर सहित पांच जातियाें को आरक्षण दिया है जो गलत है।
मालूम हो कि राजस्थान में अति पिछड़ा वर्ग को पांच प्रतिशत और केन्द्र सरकार के संविधान संशोधन के बाद आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। इससे प्रदेश में कुल आरक्षण 64 प्रतिशत हो गया है। फरवरी में 9 दिन तक जारी गुर्जर आरक्षण आंदोलन चला था। राज्य सरकार की ओर से दिए पांच सूत्री ड्राफ्ट पर सहमति के बाद 16 फरवरी कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग स्थित मकसूदनपुरा अंडरपास रेलवे ट्रेक पर आंदोलन समाप्ति की घोषणा की थी।