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जयपुर में युवाओं में बढ़ रहा है हार्ट फेलियर का खतरा

locationजयपुरPublished: Feb 12, 2020 06:52:51 pm

Submitted by:

Anil Chauchan

Heart Failure : जयपुर . Capital of Rajasthan जयपुर में 50 साल या उससे कम आयुवर्ग के मरीजों में Heart Failure के मामलों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। हालांकि आमतौर पर हार्ट फेलियर 60-65 वर्ष की आयु के लोगों को प्रभावित करता है।

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Heart Failure : जयपुर . राजस्थान की राजधानी ( Capital of Rajasthan ) जयपुर में 50 साल या उससे कम आयुवर्ग के मरीजों में हार्ट फेलियर ( Heart Failure ) के मामलों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। हालांकि आमतौर पर हार्ट फेलियर 60-65 वर्ष की आयु के लोगों को प्रभावित करता है।

निष्क्रिय और सुस्त जीवनशैली, लगातार बढ़ता तनाव, नमक और चीनी ज्यादा खाना, सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला भोजन और वायुप्रदूषण कुछ ऐसे कारक है, जिससे युवा आबादी को दिल के रोगों का सबसे ज्यादा खतरा होता है। हार्ट फेलियर सभी दिल की बीमारियों (सीवीडी) में मरीज की मौत होने और बार-बार अस्पताल में भर्ती होने का प्रमुख कारण है। हार्ट फेलियर से जुड़ी मरीज की मौत की दर की तुलना कैंसर से की जा सकती है। अपने जीवन के उपयोगी वर्षों में हार्ट फेलियर का 3 में से 1 मरीज बीमारी का पता लगने के 1 वर्ष के भीतर ही दम तोड़ देता है।

भारत में हार्ट फेलियर के मरीजों की औसत उम्र 59 वर्ष -:
एसएमएस मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में एडिशनल प्रिंसिपल सीनियर प्रोफेसर और कार्डियोलॉजी विभाग के हेड डॉ.एस.एम शर्मा ने बताया कि आमतौर पर पुरुषों में 55 साल की उम्र से पहले और महिलाओं में 65 साल की आयु से पहले होने वाली दिल की किसी भी बीमारी को समय से पहले होना माना जाता है। जीवन के उपयोगी वर्षों में, जब व्यक्ति अपनी आजीविका के लिए किसी न किसी काम से जुड़ा रहता है, ऐसे में हार्ट फेलियर के बढ़ते मामले मरीजों और उनके परिवार के जीवन पर अतिरिक्त सामाजिक आर्थिक और भावनात्मक बोझ डालते हैं। भारत में हार्ट फेलियर के मरीजों की औसत उम्र 59 वर्ष है। भारत में हार्ट फेलियर की बीमारी की चपेट में मरीज पश्चिमी देशों के मुकाबले 10 साल पहले आ जाते हैं। जयपुर में विशेषज्ञों के अनुसार उनके पास महीने में आने वाले 50 फीसदी से ज्यादा मरीज हार्ट फेलियर से पीडि़त होते हैं।

हार्ट फेलियर को समझिए -:
हार्ट फेलियर एक लगातार बढ़ती रहने वाली पुरानी बीमारी है। इस बीमारी में दिल की मांसपेशियां समय के साथ-साथ सख्त होती जाती हैं। इससे दिल शरीर में रक्त का संचार ठीक तरह से करने में सक्षम नहीं होता। इससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों तक काफी सीमित मात्रा में ऑक्सीजन और दूसरे पोषक तत्व पहुंचते हैं। हार्ट फेलियर के ज्यादातर मरीजों की जांच अचानक तब होती है, जब वह पहली बार अस्पताल में भर्ती होते हैं। इससे हार्ट फेलियर के लक्षणों के प्रति उनकी अज्ञानता और जागरूकता की कमी साफ झलकती है।

हार्ट फेलियर के लक्षण जानना जरूरी -:
फोर्टिस अस्पताल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के निदेशक डॉ. संजीब राय ने बताया कि हार्ट फेलियर का जोखिम बढ़ाने वाले कारकों और हार्ट फेलियर के लक्षणों के प्रति जागरूकता जगाने की काफी आवश्यकता है। इसके अलावा इस रोग से पीडि़त मरीज को अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना चाहिए और इसका कड़ाई से पालन करना चाहिए। इसके अलावा दवाओं को समय पर लेना चाहिए, जिससे बार-बार अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आएगी और इससे जुड़े हुए आर्थिक बोझ या इलाज में होने वाले बेतहाशा खर्च से भी मरीज को मुक्ति मिलेगी।
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