सीएसई की टीम ने राजस्थान, उप्र, हरियाणा और पंजाब के ९ जिलों से 47 सैंपल लिए। इनमें पोल्ट्री फार्म से 35 सैंपल और 12 सैंपल उस स्थान या खेत से लिए गए, जहां फार्म का कचरा इस्तेमाल हो रहा था। इनमें जयपुर, अलवर, गुरुग्राम, पानीपत, जींद, लुधियाना, गाजियाबाद, मेरठ और बुलंदशहर शामिल हैं। जयपुर और अलवर से 4-4 सैंपल लिए गए। सभी में एबीआर का स्तर अधिक पाया गया।
लैब रिपोर्ट में कुल 47 सैंपलों में 13 श्रेणियों के तहत 16 एंटीबायोटिक का परीक्षण किया गया। इसमें 10 एंटीबायोटिक मिले, जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इंसानों के इलाज में गंभीर महत्व की श्रेणी में रखा है। रिपोर्ट में 3 बैक्टीरिया की अधिकता पाई गई। ये बैक्टीरिया हैं एस्चेरिकिया कोलाई (ई-कोलाई), क्लेबसिएला निमोनिये (के-निमोनिये) और स्टेफाइलोकोकस लेंटस (एस-लेंटस) हैं। ई-कोलाई और के-निमोनिये बैक्टीरिया दिमागी बुखार, पेशाब में संक्रमण और निमोनिया का कारण बनता है।
राज्य सैंपल
राजस्थान 08
उप्र 17
हरियाणा 15
पंजाब 07 क्या है पोल्ट्री फार्म का कचरा
मुर्गियों का मल, गंदगी और कीचड़। एंटीबायोटिक के उपयोग से इस कचरे में बैक्टीरिया पनपते हैं, जो एंटीबायोटिक प्रतिरोधी होते हैं।
– फार्म के कचरे का खाद के रूप में कृषि में उपयोग करने से
– मरी हुई मुर्गियों के फेंके गए कचरे से
– फार्म से निकलने वाले गीले कचरे से
– मक्खियों के जरिए परिवहन होने से
– मांस और अंडे खाने से
– फार्म में काम करने वाले मजदूरों के जरिए
एनरोसिन, कोलिस्टिन, सिप्रोफ्लोक्सिसिन, एनरोफ्लोक्सिसिन। एंटीबायोटिक का इस्तेमाल गलत
पोल्ट्री फार्म में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल गलत है। ज्यादातर फार्मों का कचरा प्रबंधन भी खराब है। इससे पर्यावरण में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट का स्तर बढ़ रहा है।
– चंद्र भूषण, उपमहानिदेशक, सीएसई।