1992 में राम जन्म भूमि विवाद के समय ब्रिगेडियर भवानी सिंह के निर्देश पर इतिहासकार गोपालनारायण बहुरा व चन्द्र मणी सिंह ने सिटी पैलेस में सुरक्षित अयोध्या व राम मंदिर के मानचित्र आम जनता को दिखाने के लिए रखे थे। अयोध्या के मानचित्रों पर विचार विमर्श करने के लिहाज से पद्मनी देवी व दीयाकुमारी ने विद्वानों में देवर्षि कलानाथ शास्त्री, आनन्द शर्मा, गलता पीठ के अवधेशाचार्य, अजमेर से इतिहासकार आर.नाथ और बालानंद मठ के स्वामी लक्ष्मणानंदाचार्य आदि को सिटी पैलेस में बुलाया था।
अध्योध्या की परम्पराओं का पालन जयपुर रियासत में राम के अयोध्या की परम्पराओं का पालन किया जाता रहा है। सिटी पैलेस में सीताराम द्वारा की मूर्तियों को युद्ध में सबसे आगे रखा जाता था। जौहरी बाजार में श्रीराम के बाल स्वरुप में रामलला मंदिर की वजह से रास्ते का नाम रामलला का रास्ता रखा गया। मानसिंह प्रथम तक रियासत का ध्वज सफेद रहा जिसमें कचनार के झाड़ का चिन्ह था। बाल्मिक रामायण में राम राज्य के सफेद झंडे में कचनार का पेड़ बताया है। बाद में पांच रंगों का पचरंगा झंडा कायम किया गया। ढूढाड़ के सिक्को पर भी कचनार के झाड़ का चिन्ह होने से मुद्रा को झाड़शाही कहा जाता रहा। दशहरा, दिपावाली, होली, सूर्य सप्तमी आदि सभी त्योंहार अयोध्या की परम्परा से जुड़े हैं। आमेर के किले में अयोध्या की तर्ज पर बनी सीता रसोई में रामायण के प्रसंग के चित्र बने हैं।
जयपुर में राम के 268 मंदिर है सवाई जयसिंह ने जयपुर बसाने पर सबसे पहले एक भाग में राम का विशाल मंदिर बनवाकर चौकड़ी रामचन्द्रजी कायम की गई। छोटी चौपड़ पर सीतारामजी का मंदिर बना तब सवाई जयसिंह उसके मूर्ति स्थापना समारोह में शामिल हुए थे। राम नवमी पर महाराजा गलताजी जाते और वहां से बालानंदजी मठ तक शोभा यात्रा की पूजा करते। चांदपोल में राम के सभी भाईयों का अनूठा रामचन्द्रजी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। देवेन्द्र भगत के मुताबिक रावण का वध करने वाले विजय राघवजी का दुर्लभ मंदिर बालानंद मठ में है। रामनवमी पर रामायण के मूल श्लोक के साथ महाराजा आहुतियां देते थे।
जयपुर स्टेट अयोध्या सहित देश के सभी तीर्थ स्थलों में भूमि थी। रियासत का पुरेजात विभाग इसकी निगरानी रखता था। सियाशरण लश्करी , अध्यक्ष जयपुर फाउंडेशन