याचिकाकर्ता का कहना था कि मामले में पीडिता के चौमूं में दर्ज मामले में बयान अलग हैं और जयपुर में दर्ज मामले में अगल बयान हैं। इसलिए विरोधाभासी बयानों को देखते हुए एफआईआर और अधीनस्थ अदालत में चल रही कार्यवाही को रद्द किया जाए। अतिरिक्त राजकीय अधिवक्ता जीतेन्द्र श्रीमाली ने विरोध में कहा कि पीडिता के अलग-अलग मामलों में दिए बयानों पर केवल ट्रायल कोर्ट ही विचार कर सकता है और ट्रायल कोर्ट ही यह तय कर सकता है कि पीडिता ने झूठे बयान दिए हैं या नहीं। पीडिता के मजिस्ट्रेट के समक्ष 164 के बयानों और पुलिस जांच में अभियुक्तों के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप साबित पाए गए हैं। पुलिस प्रार्थी अभियुक्त सहित सात अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा-344,376 और 376-डी में और चार अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा-344 व 376 में चार्जशीट भी दायर कर चुकी है।
यह है मामला भादरा निवासी पीडिता का कहना है कि उसका अपने ससुराल वालों मतभेद थे। 28 सितंबर, 2014 को सुखदेव सिंह ने मदद के बहाने उसे तीन साल के बेटे के साथ सुशांत सिटी, कालवाड़ रोड के डी-57 मकाने में ले गया था। यहां सुखदेव ने मारपीट कर जान से मारने की धमकी देकर जबरन दुष्कर्म किया। पीडिता को पहले वैशाली नगर के एक पीजी में रखा गया और सुखदेव सहित विक्रम सिंह अरठ, श्योपाल सिंह, बहादुर सिंह और शास्त्री उसके साथ दुष्कर्म करते थे। मना करने पर एके-47 व पिस्तौल दिखाकर डराते थे। इसके बाद एसकेएल ब्लाक बी-52 में रखा तो यहां भी चार लोग उसके साथ दुष्कर्म करते थे। यहां आर.के. चौपड़ा भी उसके साथ दुष्कर्म करता था।
पुलिस ने जांच में सुखदेव सिंह, श्योपाल, प्रघुम्न शास्त्री, बहादुर सिंह, विक्रम सिंह, रामकिशोर चौपड़ा और सुरेन्द्र सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा-344,376 और 376- डी में आरोप साबित माने हैं। वहीं अभियुक्त धर्मा, हुकम सिंह, चैन सिंह और मनोज सिरसला के खिलाफ आईपीसी की धारा-344 और 376 में आरोप साबित माने हैं। लेकिन,यह चारों फिलहाल फरार हैं और इनके खिलाफ स्थाई गिरफ्तारी वारंट जारी हैं। बाकी अभियुक्तों ने हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत ले रखी हैं।