कोर्ट ने सुनवाई 16 सितम्बर तक टालते हुए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक को हाजिर होने का निर्देश भी दिया है। हाईकोर्ट व राज्य के विभिन्न फौजदारी न्यायालयों में पुलिस अधिकारी व पुलिस कर्मचारियों के अनुपस्थिति से विचारण में देरी तथा बंदियों के अनावश्यक अभिरक्षा में रहने पर भी चिंता जाहिर की गई है।
इस समस्या के समाधान के लिए हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह)व पुलिस महानिदेशक को विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं। इन तीनों अधिकारियों से कहा गया है कि एक सप्ताह के भीतर पूरे पुलिस महकमे को सावचेत करें और दिशानिर्देशों की पालना में लापरवाही करने वालों पर कार्रवाई कर संबंधित न्यायालय को सूचित किया जाए।
यह दिए हैं दिशा निर्देश – विचाराधीन प्रकरणों में तलब किए जाने पर पुलिस अधिकारी व पुलिस कर्मचारी न्यायालय में उपस्थित रहें – बिना पूर्व स्वीकृति कानून व्यवस्था या अन्य औपचारिक सूचना के आधार पर अनुपस्थित रहने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई की जाए
– हाजिरी से छूट के लिए यह व्यवस्था कोर्ट ने कहा कि हाजिरी में असमर्थ होने पर पुलिस अधिकारी, कर्मचारी अथवा विशेषज्ञता रखने वाले संबंधित पुलिस अधीक्षक से, पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक व पुलिस उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी संबंधित रेंज महानिरीक्षक से तथा रेंज महानिरीक्षक व उपमहानिरीक्षक पुलिस महानिदेशक को प्रार्थना पत्र पेश करें।
– ऐसे प्रार्थना पत्रों पर संबंधित उच्चाधिकारी न्यायालय में उपस्थिति की आवश्यकता, अभियुक्त बंदी की अभिरक्षा की अवधि, प्रकरण की ट्रायल में देरी के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को ध्यान में रखकर गवाह, पुलिस अधिकारी, कर्मचारी व विशेषज्ञ की हाजिरी से छूट पर निर्णय करें और उसके बारे में संबंधित न्यायालय को अग्रिम सूचना भेज दें।
अलवर एसपी से मांगी कार्ययोजना कोर्ट ने मई 2015 में दो बच्चों की बलि के मामले में कार्रवाई नहीं होने से संबंधित प्रकरण में अलवर पुलिस अधीक्षक पारिस देशमुख से अनुसंधान के बिन्दु व आगे की अनुसंधान प्रक्रिया की योजना से अवगत कराने को कहा है। इस विवरण की एक प्रति अधिवक्ता एस डी खासपुरिया को देने के निर्देश भी दिए हैं।
इस मामले में जताई है चिंता मई 2015 में अलवर जिले में दो बच्चों की हत्या हो गई, जिसके अनुसंधान में पुलिस ने लापरवाही बरती और अभियुक्त तांत्रिक इकबाल की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। इस मामले में अब तक इकबाल के खिलाफ अभियोजन आरम्भ करने लायक साक्ष्य नहीं हैं। कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि उसके बुलाने के बावजूद अलवर एसपी ने अदालती आदेश की पालना के बजाय वीवीआईपी सुरक्षा को तवज्जो दी।
कोर्ट ने पिछली बार यह कहा थाकोर्ट ने इस पर डीजीपी से कहा था कि उसके बुलाने के बावजूद पुलिस अधीक्षक के हाजिर नही होने के कारण क्यों न मामले को विशेष अनुसंधान शाखा या सीबीआइ के पास भेज दिया जाए।
डीजीपी से यह भी स्पष्ट करने को कहा था कि न्यायालय में उपस्थिति के मुकाबले वीआइपी की सुरक्षा को प्राथमिकता देने के क्या कोई प्रावधान हैं। यदि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है तो संबंधित पुलिस अधीक्षक पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर कोर्ट में पेश की जाए।