नर्स ग्रेड द्वितीय के लिए 30 मई 2018 को जारी विज्ञापन के जरिए 6035 पदों की भर्ती निकाली गई। इसमें लीलावती एवं सोनू वर्मा ने एसटी और एससी वर्ग से आवेदन किया। इनमें विवाह पश्चात के जारी जाति प्रमाण पत्र में पति का नाम था, जिसे विभाग ने मानने से इनकार कर दिया। जबकि काउंसलिंग के समय विवाह पूर्व का प्रमाण पत्र भी याचिकाकर्ताओं ने दिया था। इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं को सामान्य वर्ग में रखते हुए चयन सूची से बाहर कर दिया गया।
राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामप्रताप सैनी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के श्रेणीवार अंतिम चयन सूची में दर्ज अंक से ज्यादा नंबर हैं। वे राजस्थान मूल के निवासी हैं और इसी वजह से प्रमाणपत्र में पिता या पति के नाम के आधार पर अमान्य नहीं किया जा सकता। विवाह पूर्व और विवाह पश्चात उनकी श्रेणी में कोई परिवर्तन नहीं है।
वहीं राज्य सरकार की ओर से एएजी ने कहा कि विज्ञापन में कहा गया था कि जाति प्रमाण पत्र पिता के नाम से होना चाहिए। जातिगत आरक्षण पिता के नाम से तय होता है। इसी वजह से याचिकाकर्ताओं को सामान्य वर्ग में शामिल किया गया है।
इसी तरह का विवाद एएनएम भर्ती 2018 में भी सामने आया। इसमें 4936 पदों पर भर्ती होनी है। न्यायाधीश एसपी शर्मा ने राज्य सरकार को आरक्षण के संबंध में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिकता विभाग की ओर से जारी परिपत्र, शपथ पत्र पेश करने के आदेश दिए।
एससी/एसटी वर्ग में आवेदन
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार ने मई 2018 में नर्स ग्रेड द्वितीय के छह हजार 35 और एएनएम के 4965 पदों पर भर्ती निकाली थी। याचिकाकर्ताओं ने एसटी और एससी वर्ग में आवेदन किया और सफल रहे। याचिकाकर्ता की ओर से पति के नाम बने जाति प्रमाण पत्र भी पेश किए।
सामान्य वर्ग में माना
बाद में याचिकाकर्ता ने अपनी परिवेदना के साथ पिता के नाम बने जाति प्रमाण पत्र भी पेश किए। इसके बावजूद विभाग ने उनके जाति प्रमाण पत्रों को नहीं मानते हुए उन्हें सामान्य वर्ग में मानते हुए नियुक्ति से वंचित कर दिया। जबकि उनके अंक एसटी और एससी वर्ग की कट ऑफ से अधिक हैं। मामले में अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी।