यह था एग्रीमेंट : सौर व पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए निजी कंपनियों के स्तर पर 600 मेगावॉट क्षमता के प्लांट लगाए गए। सरकार ने बिजली खरीद अनुबंध किया। इसमें इंसेंटिव के तौर पर रिन्यूएबल एनर्जी सर्टिफिकेट देने का भी करार हुआ। एक प्लांट लगाने की लागत 8 से 10 करोड़ रुपए आई।
यहां लगा अडंगा : मार्च में एक्सटेंशन करने से मना किया। कपंनियां आयोेग के पास पहुंची और तर्क दिया कि प्लांट की लाइफ 25 साल की है और उसी आधार पर लागत लगाई गई, जबकि निगम 6 साल बाद ही एक्सटेंशन करने से मना कर दिया।
1 हजार यूनिट पर 1 सर्टिफिकेट मिलता है, जिसे बाजार में बेचा जा सकता है। सौर ऊर्जा के तहत शुरुआत में एक सर्टिफिकेट की दर 9300 रुपए थी। 2015 में घटाकर 3500 रुपए और 2018 में 1 हजार रुपए कर दिया गया। हालांकि, इसकी समय सीमा भी खत्म होने वाली है। हाईकोर्ट ने इन सर्टिफिकेट मामले भी विचार करने के लिए कहा है।