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हमारे बुजुर्गों ने कहा, अब सिडनी ने माना, आपस में बातें करती हैं गायें

locationजयपुरPublished: Feb 07, 2020 01:29:08 pm

Submitted by:

Ankita Sharma

शोधकर्ताओं ने भी कहा, बांटती हैं सुख-दुख
 
 

हमारे बुजुर्गों ने कहा, अब सिडनी ने माना, आपस में बातें करती हैं गायें

हमारे बुजुर्गों ने कहा, अब सिडनी ने माना, आपस में बातें करती हैं गायें

ये तो हम सभी जानते हैं कि गायें तरह-तरह से रंभाकर अपनी बातें समझाने की कोशिश करती हैं, लेकिन हाल ही में हुए एक शोध ने इसे न सिर्फ सच साबित कर दिया है, बल्कि इसके पुख्ता सबूत भी दिए हैं। गायें बहुत भावुक होती हैं और वे आपस में बातें भी करती हैं। इतना ही नहीं वे अपने सुख-दुख भी आपस में बांटती हैं। यह दावा है सिडनी विश्वविद्यालय में हुए एक शोध का। शोध के अनुसार अपने रंभाने के तरीके में परिवर्तन करके गाय बातें करती हैं। शोधकर्ता एलेक्जेंड्रा ग्रीन का कहना है कि गायें सामाजिक पशु हैं। एक अर्थ में यह आश्चर्यजनक नहीं है कि वे अपने पूरे जीवन में अपनी व्यक्तिगत पहचान पर जोर देती हैं। यह पहली बार है जब हम इस विशेषता के निर्णायक साक्ष्य के लिए आवाज का विश्लेषण करने में सक्षम हुए हैं। अध्ययन में पाया गया कि गाय झुंड के संपर्क में रहने में, संकट व्यक्त करने में, डरने में, खुश और परेशान होने पर अपनी आवाज का इस्तेमाल करती है।
इंसानों की तरह अलग-अलग आवाज

ग्रीन का कहना है कि जिस तरह हर इंसान की आवाज अलग-अलग होती है, ठीक वैसे ही गायों की आवाज भी अलग-अलग होती है। इस शोध में ३३३ गायों की आवाज के नमूने लिए गए और उनका विश्लेषण किया। जिसके बाद शोधकर्ता इस निर्णय पर पहुंचे कि वैसे तो सभी जानवर आपस में बातें करते हैं, लेकिन गाये अधिक विस्तृत और अलग-अलग मूड के अनुसार दूसरी गायों से बातें करती हैं।
आदिकाल से ही हमारी संस्कृति में महत्व


गाय का आदिकाल से ही हमारी संस्कृति में महत्व रहा है। ऋग्वेद में गाय को अघन्या, यजुर्वेद में अनुपमेय, अथर्ववेद में संपदा का घर बताया है। वर्षों पहले भगवान महावीर ने भी कहा था कि गोरक्षा के बिना मानव रक्षा संभव नहीं है। महात्मा बुद्ध ने गाय को मनुष्य का परम मित्र बताया है। यही नहीं माना जाता है कि भारतीय गाय की रीढ़ में सूर्य केतु नामक नाड़ी सूर्य की किरणों से स्वर्णाक्षार ( केरोटिन) बनाती है। इतना ही नहीं गोबर व गो मूत्र रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता होती है। गाय अपनी भावना बता सकती हैं, यह बात हमारे पूर्वज और आज हम पहले से ही मानते आ रहे हैं। अब साइंस ने बस इसपर मुहर लगा दी है। – अरविंद स्वामी, धर्म प्रचारक
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