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जयपुर मेरी शान—-बलिदानियों की कहानी बयां करती परकोटे की सिरस हवेली

जयपुर के इतिहास के पन्ने खंगालें तो जयपुर की ऐतिहासिकता, बलिदान, भव्यता की अनसुनी कहानियों का पता चलता हैं। ये सभी कहानियां जयपुर की हवेलियों और जयपुर के प्रमुख स्थानों से जुड़ी हुई हैं। परकोटे को विश्व धरोहर की सूची में जगह मिलने का एक मुख्य कारण इन हवेलियों की ऐतिहासिकता और बसावट भी है।

जयपुरJul 16, 2019 / 06:05 pm

Nishi Jain

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जयपुर मेरी शान—-बलिदानियों की कहानी बयां करती परकोटे की सिरस हवेली

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जयपुर के इतिहास के पन्ने खंगालें तो जयपुर की ऐतिहासिकता, बलिदान, भव्यता की अनसुनी कहानियों का पता चलता हैं। ये सभी कहानियां जयपुर की हवेलियों और जयपुर के प्रमुख स्थानों से जुड़ी हुई हैं। परकोटे को विश्व धरोहर की सूची में जगह मिलने का एक मुख्य कारण इन हवेलियों की ऐतिहासिकता और बसावट भी है। आइये बात करते है परकोटे में गंगापोल गेट के पास स्थित सिरस हवेली की। जिसे लोग कंगूरेदार हवेली के नाम से भी जानते हंै। सिरस हवेली राजावत कछवाहा की हवेली है। जयपुर के इतिहास में राजावतों की सात पीढिय़ों ने ढूंढाड़ की खातिर दुश्मनों से लड़ते -लड़ते अपने प्राणों के बलिदान दे दिए थे।
१७१८ में सवाई जयसिंह ने दी थी हवेली
हवेली निवासी बृजराजसिंह ने बताया कि सिरस हवेली को जयपुर राजपरिवार की ओर से पीढिय़ों पहले विभिन्न युद्धों में इनकी बहादुरी को देखकर दिया गया था। सिरस राजावात कछवाहों का ठिकाना है यहंा के प्रथम ठाकुर भवानी सिंह थे जो ईसरदा के ठाकुर मोहनसिंह के पुत्र थे। सन् १७१८ में सवाई जयसिंह ने सिरस का पट्टा दिया था। जो आज भी मौजूद है। वर्तमान में इस हवेली में सिरस केअंतिम ठाकु र मानसिंह के ७ पुत्र निवास करते हैं।
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हवेली में मौजूद ऐतिहासिक तस्वीरें
राजा-महाराजाओं के बड़े महलों व किलों के अलावा इस हवेली की भव्यता किसी मॉन्यूमेंन्टस से कम नही है। हवेली की दीवारों पर लगे चित्र आज भी बलिदानियों की कहानी कहते हैं। हवेली की संरचना अलग-अलग खंडों में नजर आती है। गेट में अंदर जाते ही रियासतकालीन पिलर के पास बना आंगन बेहद खूबसूरत है। आंगन के चारों ओर सुन्दर और हेरिटेज लुक में कमरे बने हुए हैं। हवेली की कंगूरेदार छज्जे, रियासतकालीन झरोखे, जालियां, बरामदा और आंगन में बना फव्वारा बहुत एंटीक हैं। वहीं कमरों में रखे एंटीक पान-दान, तलवारें, पेंटिंग्स, चेस आदि आज भी हवेली की शोभा को बढ़ा रहे हैं। हवेली की छत से आज भी प्रथम पूज्य गढ़ गणेश, वॉच टॉवर और परकोटा आसानी से देखा जा सकता है।
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