scriptपौराणिक से लेकर मुगलिया काल तक में थी होली की गजब दीवानगी…आज भी गाए जाते हैं जफर के लिखे फाग | Holi 2018 Special- Holi of the Mughal period | Patrika News

पौराणिक से लेकर मुगलिया काल तक में थी होली की गजब दीवानगी…आज भी गाए जाते हैं जफर के लिखे फाग

locationजयपुरPublished: Feb 23, 2018 12:41:36 pm

Submitted by:

Nidhi Mishra

पढ़ें खास रिपोर्ट जो आपको राधा—कृष्ण, अकबर जोधाबाई, बहादुर शाह जफर और महाराणा प्रताप के जमाने में होली की दीवानगी की सैर कराएगी।
 

Holi 2018 Special- Holi of the Mughal period

Holi 2018 Special- Holi of the Mughal period

होली यानी मस्ती और हुड़दंग…..समय चाहे कोई भी रहा हो, रंगों के त्यौहार का उल्लास वही रहा है, जो हम आज देखते हैं। फिर ये होली भगवान कृष्ण और राधा की हो या कृष्ण के साथ गोपियों की ही हो….. या फिर मुगल जमाने में अकबर की जोधाबाई के साथ हो। आज सिल्वर स्क्रीन पर दिखाई जाने वाली होली में भी वैसी ही मस्ती और उमंग को दिखाया जाता है। ढोल नगाड़ों के बीच विविध रंगों की छटा…..हुड़दंग…..चुहलबाजियां और मस्ती भरी छेड़छाड़…..सब वैसा ही है जैसा प्राचीन समय में हुआ करता था। होली के इसी हुड़दंग और चुहलबाजियों के प्रमाण हमें मिलते हैं चित्रकारों की कल्पनाओं में….. इन कल्पनाओं में कृष्ण—राधा और कृष्ण—गोपियों की होली का चित्रण बेहद ही आकर्षक तरीके से किया गया है। सोलहवीं शताब्दी की अहमदनगर की पेंटिंग को देख लीजिए या मेवाड़ की चित्रकला देख लीजिए या फिर बूंदी, कांगड़ा और मधुबनी शैली का चित्र ही क्यूं ना हो कृष्ण और गोपियों की होली के चित्र कलाकारों की अव्वल पसंद रहे हैं.
इतिहास में मिलते हैं मुगलों की होली के चित्र


मुगल काल की कुछ तस्वीरों में इस काल की होली के किस्सों का चित्रण देखते ही बनता है और उत्सुकता भी जगाता हैै। इनमें मशहूर है अकबर का जोधाबाई के साथ होली खेलना, जो उस समाज की कई कहानियों से हमें रूबरू कराता है। अकबर के अलावा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का ज़िक्र भी इतिहास में दर्ज है। रंग खेलने की इस परिपाटी का मुगलिया अंदाज नजर आया शाहजहाँ के ज़माने में…. इतिहास गवाह है शाहजहाँ के समय में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी यानी रंगों की बौछार कहा जाता था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र तो होली के मुरीद थे। जफर के बारे में कहा जाता है कि उनके दरबार के मंत्री होली के दिन उन्हें रंग लगाने के लिए विशेष रूप से जाया करते थे। उनके लिखे होली के फाग आज भी बड़े चाव से गाए जाते हैं।
”क्यों मो पे मारी रंग की पिचकारी, देखो कुँअर जी दूंगी गारी”।।। ये फाग आज भी चंग बजाते लोगों के मुंह से सुना जा सकता है।

खासतौर पर मेवाड़ की चित्रकारी में आप महाराणा प्रताप का वो रूप देख पाएंगे, जिसमें वे अपने दरबारियों के साथ तल्लीनता से होली खेलते नजर आएंगे। बात करें राजस्थान की तो प्रदेश के किलों और महलों में खेले जाने वाली होली तो दुनिया भर में प्रसिद्ध है। अगर ऐसा नहीं होता तो अमरीकी बिल क्लिंटन की बेटी चेलेसा क्लिंटन वाइट हाउस छोड़कर होली की मस्ती में सराबोर होने राजस्थान क्यों आती?

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