20 और 21मार्च को प्रेम और भाइचारे के त्योहार के चंग की थाप जहां राजधानी जयपुर में भी सुनाई दे रही है। छोटी काशी स्थित गोविंददेवजी के दरबार में फूलों और रंगों की धूम मची है। इस अवसर पर ठाकुरजी का शृंगार कर विशेष पोशाक धारण करवाई गई। भक्तों ने भी कान्हा संग होली खेलकर शुभकामनाएं दी। ठाकुरजी के मंदिरों में रंग मत डारे रे सांवरिया म्हारो गूजर मारे रे…, नैना नीचा कर ले श्याम से मिलावेली काईं…, आज बिरज में होली रे रसिया…, होली खेले तो म्हारा बागां में आज्यो…, होलिया में उड़े रे गुलाल छायो रंग केसरिया.. जैसे भजनों की रसधारा बह निकली।
श्रीकृष्ण मंदिरों में तो होली का डांडा रोपने के साथ ही फागोत्सव शुरू हो जाता है। फाल्गुन का महीना लगते ही कान्हा के दरबार में फागोत्सव शुरू हो जाता है। भजनों की स्वर लहरियों के बीच उड़ती गुलाल से माहौल भक्ति से सरोबार हो उठता है।