सुबह 10.45 बजे न्यायाधीश महेंद्र गोयल की एकलपीठ में दोनों मामले सुनवाई के लिए आए। मामला आने के साथ ही बसपा की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई शुरू होने वाली है ऐसे में तब तक इस पर सुनवाई स्थगित कर दी जाए। जिसका बसपा एमएलए की ओर से विरोध किया गया। जिस पर न्यायालय ने कहा कि जब याचिकाकर्ता को जल्दी नहीं तो हमें परेशान होने की आवश्यकता क्या है। इसी के साथ मामला लंच बाद बजे सुनने का फैसला किया गया।
2.18 बजे कांग्रेस की ओर से पेश पक्षकार बनने के प्रार्थना पत्र पर सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा ने कहा कि अब छहों विधायक कांग्रेस पार्टी क सदस्य है ऐसे में किसी भी तरह का फैसला करने से पहले उनका पक्ष सुना जाना चाहिए वे मामले के एक आवश्यक पक्षकार है और उनके हित मामले से जुड़े हुए हैं।
2.24 बजे बसपा की ओर से सीनियर एडवोकेट सतीश मिश्रा ने इसका विरोध करते हुए कहा कि विधायक बसपा के है और इनका कांग्रेस में शामिल करने का आदेश विधानसभा अध्यक्ष ने दिया है इस पूरे मामले में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं है और बसपा विधायक और विधानसभा अध्यक्ष केवल दो महत्वूपर्ण विधायक है ऐसे में कांग्रेस को पक्षकार नहीं बनाना चाहिए।
2.30 बजे न्यायाधीश महेंद्र गोयल ने कांग्रेस के प्रार्थना पत्र को निस्तारित करते हुए कहा कि कांग्रेस को हस्तक्षेप का अधिकार। 2.31 बजे बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय पर रोक लगाने वाली याचिकाओं पर बहस शुरू हुई। इसमें सबसे पहले सतीशचंद मिश्रा ने कहा कि बसपा के विधायकों ने स्पीकर को दल बदल की सूचना दी थी। यानि पूरे राजनीतिक दल के कांग्रेस में विलय होने की जानकारी। किसी भी राष्ट्रीय पार्टी का विलय केवल एक सूचना पर कैसे हो सकता है। विधायकों के कहने मात्र से एक पार्टी का दूसरी पार्टी में विलय नहीं हो सकता है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी तरह से स्पीकर का आदेश संवैधानिक नहीं है।
3.23 बजे मदन दिलावर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सतपाल जैन ने विरोध करते हुए कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का फैसला पूरी तरह से असंवैधानिक है और सभी बसपा विधायकों की सदस्यता दसवीं अनुसूची के 2.1.ए के तहत समाप्त करते हुए अयोग्य ठहराना चाहिए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि तकनीकि आधार पर उनकी याचिका को विधानसभा अध्यक्ष ने खारिज की है लेकिन इस दौरान भी अध्यक्ष को तथ्यों पर जाना चाहिए था।
3.42 बजे विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपित सिब्बल ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का फैसला पूरी तरह से सही है और जब अध्यक्ष ने याचिका तकनीकि आधार पर खारिज की है तो याचिकाकर्ताओं को चाहिए था कि वे नए सिरे से नियमों के अनुसार याचिका अध्यक्ष के सामने दाखिल करते। इस तरह से न्यायालय को 226 का विस्तार नहीं करना चाहिए और विधानसभा अध्यक्ष के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और यह एक व्यवस्था का सवाल था जिसमें न्यायिक हस्तक्षेप की गुजाइंश नहीं है।
4.35 बजे न्यायालय ने सुनवाई गुरुवार सुबह 10.30 बजे तक स्थगित कर दी।
कांग्रेस को बहस में हस्तक्षेप का अधिकार, लेकिन पक्षकार नही बसपा विधायकों से जुड़ी याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान ही राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा और मुख्य सचेतक महेश जोशी की ओर से पक्षकार बनने की अर्जी दी थी। कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ वकील विवेक तनखा ने कहा कि बसपा के सभी 6 विधायक विधानसभा अध्यक्ष के 18 सिंतबर 2019 के आदेश से अब कांग्रेस पार्टी के विधायक है। अदालत के किसी भी फैसले से कांग्रेस प्रभावित होती है। ऐसे में कोई फैसला करने से पहले उनको भी सुना जाना चाहिए। बसपा की ओर से वरिष्ठ वकील सतीश मिश्रा ने कांग्रेस की अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि विधायक बसपा के है और इनका कांग्रेस में शामिल करने का आदेश विधानसभा अध्यक्ष ने दिया है इस पूरे मामले में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं है और बसपा विधायक और विधानसभा अध्यक्ष ही इस मामले में दो महत्वूपर्ण पक्षकार है ऐसे में कांग्रेस को पक्षकार नहीं बनाना चाहिए। दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद जस्टिस महेंद्र गोयल की एकलपीठ ने मामले में कांग्रेस को बहस करने के लिए हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया है लेकिन पक्षकार नही बनाया है। अदालत ने कांग्रेस के प्रार्थना पत्र को निस्तारित करने के आदेश दिये है।
हम क्यों परेशान हों न्यायाधीश महेंद्र गोयल की एकलपीठ में दोनों मामले सुनवाई के लिए आए। मामला आने के साथ ही बसपा की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई शुरू होने वाली है ऐसे में तब तक इस पर सुनवाई स्थगित कर दी जाए। जिसका बसपा एमएलए की ओर से विरोध किया गया। जिस पर न्यायालय ने कहा कि जब याचिकाकर्ता को जल्दी नहीं तो हमें परेशान होने की आवश्यकता क्या है। इसी के साथ मामला लंच बाद बजे सुनने का फैसला किया गया।