लॉकडाउन से इंसान मुश्किल में लेकिन रंगत में आई प्रकृति
कोरोना संक्रमण के चलते देशव्यापी लाकडाउन ने भले ही सरकार और आम आदमी की मुश्किलों में इजाफा किया है लेकिन इससे प्रकृति ने राहत की सांस ली है। लाकडाउन के तीसरे चरण की समाप्ति तक वायु और जल प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान न सिर्फ नदियां पवित्र और निर्मल हो गयी बल्कि हवा भी साफ स्वच्छ हो गई।
लॉकडाउन से इंसान मुश्किल में लेकिन रंगत में आई प्रकृति
जल और नभ में आक्सीजन के स्तर में बढोत्तरी दर्ज की गई, वहीं पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकने वाली ओजोन परत में सुधार देखने को मिला। पिछले कुछ दशकों से अप्रैल से ही पडऩे वाली गर्मी इस वर्ष मई के मध्य तक महसूस की गई।
पिछले करीब दो महीने से देश में जारी लॉकडाउन पर्यावरण के लिए संजीवनी साबित हुआ है। स्थिति यह है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष मई के महीने में तापमान में दो से तीन डिग्री की कमी आई है। पिछले दिनों से वातावरण में प्रदूषण इतना ज्यादा था कि लोग परेशान होने लगे थे, बीमार होने लगे थे। लॉकडाउन भले ही कोरोना से बचने के लिए लगाया गया हो लेकिन इसके चलते पर्यावरण पर जो सकारात्मक प्रभाव पड़ा है उसकी कुछ दिनों पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पर्यावरण और वन, नदियों पर मंडरा रहे खतरे को लेकर लोग चिंतित थे। नदियां मैली होती जा रही थी और भूजल स्तर भी नीचे गिरता चला जा रहा था जिसके कारण पानी खत्म होने तक की अटकलें लगाई जाने लगी थी। लेकिन लॉकडाउन में भूजल स्तर नीचे गिरना कम हो गया है। इसके साथ ही हरियाली भी बढ़ रही है क्योंकि प्रदूषण का खतरा नहीं है।
पिछले सप्ताह तक मौसम आमतौर पर सुहाना रहा है और अब नौतपा में एसी या कूलर चलाने की नौबत आयी है। लॉकडाउन के चलते ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण थम गया। इससे भी बड़ी बात यह है कि नदियां साफ हो रही है। कारखाने बंद है, गंदा पानी नदियों में नहीं जा रहा है इसके चलते नदियां साफ हो रही हैं नदियों का पानी अब आचमन लायक हो गया है जो कि अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी नहीं हो पाया था। इस बदले मौसम में वन्यजीव और पशु-पक्षी भी काफी खुश हैं और इस मौसम का आनंद उठा रहे हैं। इसके अलावा गौरैया प्रजाति की जो चिडिय़ा विलुप्त होती जा रही थी वह भी अब दिखाई देने लगी है।