कई युवा भी इस जालसाजी के शिकार हुए, जो परिजन को इस बारे में बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इस गबन से वे अभिकर्ता (एजेंट) सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं जिन्होंने बड़ी संख्या में लोगों से निवेश करवाया। ऐसे अभिकर्ताओं का कहना है कि अब उनका जीना दुश्वार हो गया है। लोग उनके घर तक पहुंच रहे हैं लेकिन वे कुछ नहीं कर पा रहे।
केस-01 : सीकर, बोसाना निवासी महेश कुमार, उनके पिता व भाई ने संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी में निवेश किया। अपनी दुकान से होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा जोड़ते रहे। इसी राशि में से दुकान में नए सामान की खरीद करते रहे लेकिन जब व्यापार का दायरा फैलाने की बारी आई तो गबन होने की जानकारी मिली। एकबारगी सन्न रह गए। फिर पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
केस-03 : जमवारामगढ़ निवासी रतनलाल मीना जैसे सैकड़ों लोगों से पैसे जमा कराने के लिए बिचौलियों का जाल बिछाया गया। बिचौलिए ने जिन लोगों को झांसे में लिया, उनमें ज्यादातर व्यापारी हैं जो हर दिन 100 से 500 रुपए तक जमा कराते रहे। बिचौलिए ने यह राशि डाकघर में जमा कराने की बात कही और डाकघर की फर्जी पासबुक दे दी। पीडि़त रतनलाल की बहन की शादी 12 मई को थी तो वह रकम लेने डाकघर गया। वहां पता चला कि ऐसा कोई अकाउंट है ही नहीं। बिचौलिए को पकड़ा तो उसने बताया कि यह राशि आदर्श को-ऑपरेटिव सोसायटी के बैंक में जमा कराता रहा। अब वह मोबाइल बंद कर और कमरा खाली कर रफूचक्कर हो गया।
केस-05 : भीलवाड़ा के मंगलपुरा निवासी शक्ति सिंह ने संस्कार क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के खिलाफ एसओजी में शिकायत की है। सिंह का आरोप है कि सोसायटी पदाधिकारियों ने आमजन, सदस्यों की गाढ़ी मेहनत की कमाई का गबन किया है। आदर्श को-ऑपरेटिव सोसायटी का घोटाला सामने आने के बाद उन्होंने संस्कार सोसायटी का भी पता लगाया तो करीब 3 करोड़ रुपए का मामला सामने आया है। इससे जुड़े दस्तावेज एसओजी को भेजे हैं।