मस्तिष्क को 10 डिग्री सेल्सियस तक किया ठंडा मरीज के खून को ‘बर्फ के ठंडे खारे घोलÓ से बदलकर तेजी से मस्तिष्क को 10 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है।
आइस कोल्ड सलाइन सॉल्यूशन (ठंडे लवणीय घोल) को सीधे मुख्य धमनी में पंप किया जाता है।
मुख्य धमनी वह धमनी है जो हृदय से शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त ले जाती है।
इससे मनुष्य निलंबित एनीमेशन की स्थिति में पहुंच जाता है और डॉक्टरों को सर्जरी के लिए अधिक समय मिलता है।
फिर खून को 37 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है और उसका दिल फिर से काम करने लगता है।
प्रक्रिया की एक जटिलता यह है कि मरीजों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, क्योंकि सर्जरी के बाद उन्हें गर्म किया जाता है।
इन गंभीर मरीजों पर कारगर हादसे में जिन्हें भयावह चोट लगती है।
रक्तस्राव का खतरा अधिक रहता है।
इलाज से पहले दिल का दौरा पड़ता है।
चाकू या गोली लगने से जो गंभीर घायल होते हैं।
सामान्य रूप से जिनके जीवित रहने की संभावना 5 प्रतिशत से कम होती है।
इलाज के लिए मिल जाता है घंटेभर का समय
इस प्रक्रिया से मस्तिष्क की गतिविधि शिथिल पड़ जाती है। इससे रोगी की शारीरिक क्रियाएं मंद पड़ जाती हैं। अमरीकी डॉक्टरों ने दावा किया कि ऐसा करने से सर्जन को करीब एक घंटे का अतिरिक्त समय इलाज के लिए मिल जाता है। यह प्रक्रिया उस स्थिति में भी कारगर होने का दावा है, जब हृदय गति रुक जाती है और रक्त संचार ठप हो जाता है। ऐसे में मस्तिष्क को ऑक्सीजन की बेहद आवश्यकता होती है और यदि ऑक्सीजन न मिले तो पांच मिनट के भीतर मनुष्य को अपूरणीय क्षति होती है। इस हालात में मरीज की मौत हो जाती है।
टीशरमैन के मुताबिक घायल सुअरों पर यह परीक्षण सफल रहा है। हम अभी परीक्षण कर रहे हैं और रोज कुछ नया सीखने और करने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि 20 महिला-पुरुषों पर भी परीक्षण कर इसका असर देखा जाएगा। यह प्रक्रिया 2020 के अंत तक चलेगी।