इस खेती में मिट्टी का उपयोग बिल्कुल भी नहीं होता। दुनिया के कई देशों में हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन हो रही है। यानि मिट्टी का प्रयोग किए बिना सिर्फ पानी से खेती की जा रही है।
राजस्थान में हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन को जयपुर से शुरू करने की योजना बनाई गई है। दुनिया में शहरीकरण से लगातार सिमट रही खेती की जमीन की समस्या और उत्पादन की बढ़ती मांग को देखते हुए अच्छी पैदावार के लिए कई देशों में हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन के जरिए फल, सब्जियों और सीजनल क्रॉप की फार्मिंग की जा रही है।
जापान, आॅस्ट्रेलिया समेत कई देशों में इस खेती को फ्यूचर फार्मिंग के रूप में शुरू कर दिया गया है। राजस्थान में इस खेती को लाने के लिए राजस्थान आॅलिव कल्टीवेशन लिमिटेड यानि आरओसीएल ने कवायद शुरू कर दी है।
आरओसीएल ने जयपुर के बस्सी ब्लॉक में स्थित अपने सेंटर आॅफ एक्सीलेंसी में हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू करने के लिए एक्सप्रेशन आॅफ इंस्टरेस्ट जारी किया है। हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन में मिट्टी के बिना खेती की जाती है। इस तकनीक में सिर्फ पानी के जरिए खेती होती है। पानी को विभिन्न प्रकार की पाइपों में एकत्रित करके पत्तेदार सब्जियों और अन्य प्रकार के पौधों की जड़ो को इस पानी में डूबोया जाता है। जड़े पानी में डूबी रहती हैं।
इस पानी में न्यूट्रेंट सोल्यूशन मिलाकर पौधों को पोषण प्रदान किया जाता है। इस तकनीक में मिट्टी में होने वाली खेती की तुलना में अधिक उपज होती है। साथ ही पेस्टीसाइडस का प्रयोग नहीं किए जाने से पैदावार भी अच्छी गुणवत्ता की होती है।
जयपुर के बस्सी में फिलहाल दो से चार हजार स्क्वायर मीटर एरिया में इस हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन के लिए ईओआई जारी की गई है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो बस्सी स्थित सेंटर आॅफ एक्सीलेंसी पर पार्सले, चाइनीज केबेज, चेरी टमाटो, लेटिव समेत अन्य का उत्पादन किया जा सकता है।
हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन से पैदा होने वाली पत्तेदार सब्जियों को प्रयोग अच्छे होटल्स में किया जा रहा है। एफएओ के अनुसार दुनिया में वर्ष 2005 की तुलना में 2050 में 60 फीसदी तक फूड प्रोडक्शन बढ़ने के अनुमान है।
ऐसे में क्लाइमेट चैंज, नेचर डिजास्टर, जमीन की कमी समेत अन्य कई कारणों के चलते दुनिया के देश हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन को बढ़ावा देने में लगे हैं।