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‘भरोसे’ ने पाया मुकाम, परिपाटी से दिया ‘सम्मान’

locationजयपुरPublished: Nov 02, 2020 11:07:02 pm

Submitted by:

Pankaj Chaturvedi

— आईएएस की तबादला सूची का विश्लेषण
 

jaipur

मुख्य सचिव निरंजन आर्य

जयपुर. सीनियर, जूनियर, दिल्ली के रसूखात और राजस्थान की रिश्तेदारी… इन सभी सवालों के बीच बीते कई दिनों से गुत्थी बनी नए मुख्य सचिव की ताजपोशी को आखिरकार सरकार ने शनिवार आधी रात बाद सिरे चढ़ा दिया। 21 नौकरशाहों की फेरबदल में सीएस निरंजन आर्य से लेकर नीचे तक जो एक फैक्टर सर्वाधिक प्रभावी दिखा वह है अफसर पर सरकार का ‘भरोसा’। कई महत्वपूर्ण जगहों पर वरिष्ठता और पदनाम जैसे विषयों को दरकिनार कर अफसर को उसकी काबिलियत और भरोसे के कारण नई कुर्सी मिली। दूसरी ओर, वरिष्ठता के उलटफेर में जो अफसर असहज हो सकते थे, उनके सम्मान की रक्षा के लिए सरकार ने ‘सचिवालय के बाहर की कुर्सी’ की परिपाटी भी बखूबी निभाई। हालांकि कुछ अधिकारियों को इस सूची में भी विवादों की भेंट चढ़ा माना जा सकता है।
आर्य ने जीती जंग

नए मुख्य सचिव निरंजन आर्य शुरु से ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भरोसेमंद अफसर माने जाते हैं। पिछली गहलोत सरकार में वह मुख्यमंत्री के सचिव रहे थे। संभवत: इसी कारण उन्होंने भाजपा शासन में अपना लगभग पूरा कार्यकाल विभागीय जांच और राजस्व मंडल सदस्य जैसे पदों पर पूरा किया। इस सरकार के आते ही भरोसे का फायदा मिला और गहलोत ने आते ही उन्हें प्रमुख सचिव, वित्त के तौर पर सबसे महत्वपूर्ण महकमे की कमान सौंप दी। वरिष्ठता में नीचे होते हुए भी आर्य पहले दिन से ही ‘भरोसे’ के फैक्टर पर सीएस की दौड़ में मजबूत दावेदार बने रहे और आखिर में यह जंग जीती।
पहली बार लांघी इतनी वरिष्ठता

यों प्रदेश मेंं वरिष्ठता सूची में शीर्ष के कुछ अफसरों को नजरअंदाज कर मुख्य सचिव चुनने के कई उदाहरण है, लेकिन आर्य के चुनाव को लेकर आईएएस अधिकारियों में यह चर्चा है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि दस अधिकारियों की वरिष्ठता दरकिनार की गई हो। इस चुनाव में 1985, 1987 और 1988 के पूरे तीन बैच के अधिकारियों को छोड़ कर 1989 बैच से आर्य का चुनाव हुआ है। अधिकारी दबी जुबान से ही सही,लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं कर रहे हैं कि आने वाले दिनों में वंचित आला अधिकारियों का पूरा एक खेमा एकजुट हो सकता है। ऐसे में आर्य के अपने ही वरिष्ठों से तालमेल बैठाने की एक नई चुनौती भी सामने आ सकती है। आईएएस काडर में इस वर्ष हुए प्रमोशनों को मिला लें तो अब आर्य से नीचे अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के महज तीन ही अधिकारी बचे हैं। इनमें भी महज रोहित कुमार सिंह ही सचिवालय में पदस्थापित हैं। शेष दो में संजय मल्होत्रा केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं, जबकि आर.वेंकटेश्वरन राजस्व मंडल में हैं।
पहले जीता विश्वास और अब कुर्सी

अखिल अरोड़ा: प्रमुख सचिव, वित्त बनाए गए अखिल अरोड़ा ने हाल ही चिकित्सा विभाग में कोरोना प्रबंधन की कमान संभाल रखी थी। अब आर्य के उत्तराधिकारी बने। भाजपा शासन में भी आईटी के मुखिया के तौर पर उन्होंने तारीफ पाई थी।
टी.रविकांत: भाजपा शासन में सीएम के सचिव रहे टी.रविकांत इस सरकार में भी पहले जयपुर विकास आयुक्त रहे और वित्त में आने के महज तीन माह में भी राजस्व सचिव जैसा बड़ी जिम्मेदारी का ओहदा हासिल किया।
दिनेश कुमार: प्रमुख उर्जा सचिव दिनेश कुमार 2009 में गहलोत सरकार के दौरान सीएम के विशेष सचिव रहे थे। अब बिजली में आठ माह के कार्यकाल में ही बड़ा मुकाम पाया है। कोरोना प्रबंधन में भी वंदे भारत मिशन में बड़ी जिम्मेदारी निभाई।
सिद्धार्थ महाजन: 2003 बैच के सिद्धार्थ महाजन ने पहले कोरोना काल में जरूरतमंदों के लिए रसद का बेहतर प्रबंधन किया और फायदा यह मिला कि सचिव रहते हुए ही चिकित्सा जैसे बड़े विभाग की बागडोर उन्हें सौंपी गई। सामान्य तौर पर सरकार इस विभाग में प्रमुख सचिव या एसीएस स्तर का अधिकारी लगाती आई है।
…और यों सरकार ने निपटाए विवाद

अजिताभ शर्मा: सरकार के शुरुआती काल में सीएमओ में रहे शर्मा को उर्जा से हटाने के पीछे बीते दिनों विभाग में 114 करोड़ के टेंडर को लेकर हुई आपसी खींचतान को कारण माना जा रहा है। विभाग में उनके मातहत आईएएस पी.रमेश ने इस टेंडर को लेकर अपने आला अधिकारियों पर खुलकर आरोप लगाए थे। इसके बाद पहले सरकार ने रमेश का तबादला किया और अब अजिताभ को भी खान में लाया गया है।
आरुषि अजेय मलिक: पहले पंचायती राज में पोस्टिंग के दौरान तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह से ‘विवाद ए आम’ के बाद अजमेर संभागीय आयुक्त बनी आरुषि ने वहां भी नागौर नगर परिषद आयुक्त की जांच खोल कर नया विवाद पैदा कर दिया। मंत्री शांति धारीवाल ने इस पर गहरी आपत्ति भी जताई थी। एक टिप्पणी में धारीवाल ने यह भी लिख दिया था कि संभागीय आयुक्त के पास ऐसे कोई अधिकार नहीं है, जिससे कि वह इस तरह जांच करवा सके।
सम्मान की रक्षा का ‘रास्ता’

तबादला सूची में वरिष्ठ आईएएस सुबोध अग्रवाल, वीनू गुप्ता और राजेश्वर सिंह नौकरशाही की उस परिपाटी का उदाहरण बने हैं, जहां सरकार ने उनके सम्मान की रक्षा के लिए ‘रास्ता’ दिखाया है। उनसे जूनियर आर्य को नौकरशाही का मुखिया बनाने के बाद तीनों को सचिवालय से बाहर पोस्टिंग दी गई है। दरअसल, सचिवालय में बैठकों के दौरान वरिष्ठतम अधिकारी उसकी अध्यक्षता करता है। ऐसे में यदि ये अधिकारी सीएस आर्य की बैठक में जाते तो उनके लिए असहज होता। सरकार ने परंपरा के अनुसार इसी का रास्ता निकालते हुए तीनों दिग्गज अफसरों को बाहर बैठा दिया।
तिकड़ी का दावा फिर भी बरकरार

आर्य के चुनाव में वरिष्ठता दरकिनार करने के बावजूद अगले मुख्य सचिव पद पर रविशंकर श्रीवास्तव और गिर्राज सिंह का ही दावा समाप्त हो रहा है, जबकि इनके बाद वरिष्ठता में शीर्ष पर बैठीं तीन महिला अफसर उषा शर्मा, नीलकमल दरबारी और वीनू गुप्ता की दावेदारी अगली बार भी बरकरार रहेगी। निरंजन का रिटायरमेंट जनवरी, 2022 में होना है। ऐसे में तब तक रविशंकर और गिर्राज सिंह तो रिटायर हो जाएंगे। लेकिन जनवरी, 2022 के बाद भी उषा की सेवा जून, 2023 तक, दरबारी की फरवरी, 2023 तक और वीनू की दिसंबर, 2023 तक रहेगी।
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