बाणगंगा नदी में कुंडों में डूबकी लगाकर स्नान करने के बाद मोक्षदायिनी बाणगंगा नदी में विधिविधान से पूर्वजों की अस्थियां प्रवाहित की जाती थी। बाणगंगा नदी व ऐतिहासिक रामगढ़ बांध के सूखने से दो दशक से अस्थियों का विसर्जन होना बंद हो गया है। मोक्षदायिनी बाणगंगा नदी में वापस पानी आए तो लोग पूर्वजों एवं मृतकों के अस्थि विसर्जन यहीं कर सकेंगे। रामगढ़ बांध में पानी लाकर बांध को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
बाणगंगा नदी में आसपास सहित जयपुर, दौसा व अलवर जिले के लोग बाणगंगा में अस्थियां प्रवाहित करने आते थे। बाणगंगा को मां गंगा नदी ही माना जाता है। बाणगंगा नदी सूखने के साथ रामगढ़ बांध सूख गया तथा हमेशा जलमग्न रहने वाला जलेश्वर महादेव मंदिर बिना जल के विरान नजर आता है।
इसलिए कहते हैं बाण गंगा
महाभारत कालीन ऐतिहासिक बाणगंगा नदी पर जमवारामगढ़ कस्बे के पास अरावली पर्वत शृंखला के बीच में ऐतिहासिक प्रसिद्ध रामगढ़ बांध का निर्माण जयपुर रियासत के महाराज माधोसिंह द्वितीय ने सवा सौ वर्ष पहले कराया था। महाकाव्य महाभारत के अनुसार पांडवों ने 12 वर्ष के वनवास के बाद 1 वर्ष का अज्ञातवास राजा विराट के राज्य बैराठ में बिताया था। तब उन्होंने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को बैराठ के पास मैड़ के जंगल के शमी वृक्ष पर छुपाया था। वनवास पूरा होने के बाद अर्जुन ने छुपाए हुए दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को गंगा जल से शुद्ध करने के लिए उसी शमी वृक्ष के पास गंगा मैया का आह्वान किया और धरती में तीर चलाया, तब गंगा नदी प्रकट हो गई थी। इसी कारण इसे बाणगंगा या अर्जुन की गंगा, ताला नदी व रूणडित नदी नाम से भी जाना जाता है।
महाभारत कालीन ऐतिहासिक बाणगंगा नदी पर जमवारामगढ़ कस्बे के पास अरावली पर्वत शृंखला के बीच में ऐतिहासिक प्रसिद्ध रामगढ़ बांध का निर्माण जयपुर रियासत के महाराज माधोसिंह द्वितीय ने सवा सौ वर्ष पहले कराया था। महाकाव्य महाभारत के अनुसार पांडवों ने 12 वर्ष के वनवास के बाद 1 वर्ष का अज्ञातवास राजा विराट के राज्य बैराठ में बिताया था। तब उन्होंने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को बैराठ के पास मैड़ के जंगल के शमी वृक्ष पर छुपाया था। वनवास पूरा होने के बाद अर्जुन ने छुपाए हुए दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को गंगा जल से शुद्ध करने के लिए उसी शमी वृक्ष के पास गंगा मैया का आह्वान किया और धरती में तीर चलाया, तब गंगा नदी प्रकट हो गई थी। इसी कारण इसे बाणगंगा या अर्जुन की गंगा, ताला नदी व रूणडित नदी नाम से भी जाना जाता है।
ये कहना है जलेश्वर महादेव हमेशा पानी में जलमग्न रहते थे। पूर्वज यहीं अस्थियां विसर्जित करते थे। आज भी हरिद्वार एवं शौरू जी घाट जाने के बाद भी बाणगंगा नदी में अस्थियां जरूर प्रवाहित की जाती हैं। पानी नहीं होने से दो दशक से अस्थियों का विसर्जन नहीं हो रहा।
गणेश सैनी, अध्यक्ष, जलेश्वर महादेव सेवा समिति, रामगढ़ बांध
गणेश सैनी, अध्यक्ष, जलेश्वर महादेव सेवा समिति, रामगढ़ बांध
जलेश्वर महादेव रामगढ़ बांध की पहचान है। प्राचीन काल में यहां पूर्वजों की अस्थियां बाणगंगा में विसर्जित की जाती थी।
एडवोकेट रामजीलाल मीना, पूर्व प्रधान एवं सदस्य रामगढ़ बांध बचाओ संघर्ष समिति, जमवारामगढ़
एडवोकेट रामजीलाल मीना, पूर्व प्रधान एवं सदस्य रामगढ़ बांध बचाओ संघर्ष समिति, जमवारामगढ़