जयपुर

मॉब लिंचिंग के मामले में पुलिसकर्मियों पर उदारता क्यों?

– हाईकोर्ट ने डीजीपी को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

जयपुरSep 08, 2018 / 09:02 pm

Shailendra Agarwal

पुलिस इंस्पेक्टर यानि आमजन को राहत, अपराधियों में दहशत

हाईकोर्ट ने मॉब लिंचिंग के 13 साल पुराने मामले में पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी किया है, जिसमें उनसे मॉब लिंचिंग के मामले में भीड़ का साथ देने वाले पुलिसकर्मियों को सख्त सजा नहीं देने पर स्पष्टीकरण देने को कहा गया है। अब इस मामले में 26 सितम्बर को सुनवाई होगी।
मामला दौसा जिले के रामगढ़ पचवाड़ा थाना क्षेत्र का है। घटना के समय यह थाना पुलिस चौकी हुआ करता था। इस पुलिस चौकी में कांस्टेबल रहे श्री किशन, पगडी राम मीणा व गिल्याराम मीणा पर आरोप है कि उन्होंने 7 सितम्बर 2005 को गाय चोरी के मामले में दो व्यक्तियों को बिना एफआइआर हिरासत में रखा, जबकि उनकी पहले भीड़ ने भी पिटाई की थी। इसी मामले में तीनों कांस्टेबलों को एक वेतनवृद्धि रोकने की सजा दी गई थी, जिसके खिलाफ तीनों कांस्टेबलों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
पुलिसकर्मियों को सजा पर्याप्त नहीं दी?
न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा ने मामला सामने आने पर कहा, यह मामला तो मॉब लिंचिंग का है। रिकॉर्ड देखने से लगता है तीनों पुलिसकर्मियों को पर्याप्त सजा नहीं दी गई है। पुलिस महानिरीक्षक ने तीनों पुलिसकर्मियों को सजा देने में उदारता दिखाई है। इस मामले में भीड़ ने किसी की पिटाई की और पुलिस ने उसे रोकने का प्रयास नहीं किया। पुलिस महानिरीक्षक ने पुलिसकर्मियों को बचाया, केवल एक वेतनवृद्धि रोकने की सजा दी है।
याचिका में वेतनवृद्धि रोकने को चुनौती
एक वेतनवृद्धि रोकने के आदेश से प्रभावित तीन कांस्टेबल हाईकोर्ट आए थे। उनकी ओर से कोर्ट को कहा गया कि सीआई ने पूर्वाग्रह से उनके खिलाफ जांच की। पुलिस महानिरीक्षक प्रारम्भिक जांच से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने दौसा पुलिस अधीक्षक को पुन: जांच का निर्देश दिया। इसके बावजूद सेवा नियमों के तहत १६ सीसीए की कार्रवाई की। जांच के दौरान 22 लोगों से पूछताछ की और किसी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कुछ नहीं बोला। जांच में आरोप प्रमाणित नहीं होने के बावजूद 5 दिसम्बर 2008 को एक वेतनवृद्धि रोकने की सजा दी है, जिसके खिलाफ अपील पुलिस महानिरीक्षक ने 29 दिसम्बर 2015 को खारिज कर दी।
याचिका वापस लेने की नहीं दी अनुमति
कोर्ट ने मॉब लिंचिंग के इस मामले पर सख्ती दिखाई, तो याचिकाकर्ताओं ने याचिका वापस लेने की अनुमति चाही। इस पर कोर्ट ने याचिका वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

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