इस समय देश में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुस्लिम अवैध रूप से बसे हुए हैं। इनमें से 7,096 सिर्फ जम्मू में ही हैं जबकि हैदराबाद में 3059, मेवात में 1200, जयपुर में 400 और दिल्ली के ओखला इलाके में इनकी तादाद 1061 के करीब है।
मंत्रालय के मुताबिक पश्चिम बंगाल और असम में ऐसा नेटवर्क काम कर रहा है जो रोहिंग्या को देश में दाखिल होते ही उन्हें पहचान से जुड़े फर्जी दस्तावेज मुहैया कराता है। यहां तक कि मुस्लिम संगठनों के कुछ ऐसे एनजीओ भी हैं जो कैंपों में रहने वाले रोहिंग्या को सामान उपलब्ध कराते हैं। खुफिया सूत्रों जानकारी मिली है कि केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी इनका दखल बढ़ रहा है साथ ही जम्मू, हैदराबाद और अंडमान में नए शरणार्थी दाखिल हो रहे हैं।
रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से ही है। रखाइन राज्य में जिसे अराकान के नाम से भी जाता है, 16वीं शताब्दी से ही मुसलमान रहते हैं। ये वो दौर था जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था। 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। इस दौरान ब्रिटश शासकों ने बांग्लादेश से लेबर को अराकान लाना शुरू किया। इस तरह म्यांमार के रखाइन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई। बांग्लादेश से जाकर रखाइन में बसे ये वही लोग थे, जिन्हें आज रोहिंग्या मुसलमानों के तौर पर जाना जाता है।
रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल ने विन की सरकार ने 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू कर दिया। इस कानून के तहत रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी गई। जिसके बाद ये लोग दूसरे राज्यों में शरण ले रहे हैं। हाल ही में हुई सैन्य कार्रवाई के बाद तो रोहिंग्याओं ने बड़ी संख्या में म्यांमार को ही छोड़ दिया।