ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई के अनुसार चार माह के शयन के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी पर विष्णुजी जागते हैं पर वे सृष्टि का संचालन बैकुंठ चतुर्दशी के दिन से ही शुरू करते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर ही चातुर्मास में संचालन कर रहे शिवजी भगवान विष्णु को सृष्टि का भार फिर सौंपते हैं। इस दिन शिवजी के साथ भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
पंचांग भेद के कारण रविवार को कार्तिक पूर्णिमा भी मनाई जा रही है। इसे देव दीपावली, त्रिपुर पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन दान-पुण्य, पूजा—पाठ का कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर शाम को नदी में दीपदान करने का महत्व है। इस दिन सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का आयोजन किया जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेेंद्र नागर बताते हैं कि पूर्णिमा स्नान सोमवार सुबह यानि 30 नवंबर को ही किए जाने चाहिए, रविवार को शाम या रात को दीपदान, पूजा—पाठ करना चाहिए। रविवार को विष्णुजी को केसर, चंदन, पीले वस्त्र, पीले फूल चढ़ाएं। शिव अभिषेक कर बिल्वपत्र अर्पित करें। दीपक जलाकर आरती करें। विष्णुजी और शिवजी के मंत्रों का जाप करें।