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पंचायत चुनाव(Panchayat elections) में महिलाएं सिर्फ प्रत्याशी,किसी के लिए पति तो किसी का बेटा बना उनकी पहचान

locationजयपुरPublished: Jan 18, 2020 10:12:47 am

Submitted by:

HIMANSHU SHARMA

पंचायत चुनाव लॉटरी में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण के बावजूद भी नहीं मिल रहा हक

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जयपुर
पंचायत चुनाव 2020 को लेकर प्रदेश में पंच – सरपंच के लिए पहले चरण के लिए मतदान हो चुका है और परिणाम भी आज चुके हैं। वहीं अभी तीन चरणों के चुनाव होने बाकी हैं। पंचायतो की लॉटरी में इस बार पचास प्रतिशत सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होने के कारण आधी से ज्यादा पंचायतों में महिलाएं पंच और सरपंच चुनी जाएगी। पहले चरण में हुए मतदान के बाद भी आधी से ज्यादा पंचायतों में महिलाएं ही पंच और संरपंच चुनी गई हैं। लेकिन प्रदेश में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण मिलने के बावजूद भी इन महिलाओं को उनका हक और पहचान नहीं मिल रही हैं। दरअसल पंचायत चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरी महिलाएं सिर्फ लॉटरी में सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होने के कारण ही चेहरा बनी हैं। लेकिन उनकी पहचान तो आज भी पुरुष ही बने हुए हैं। महिलाओं के लिए वोट मांगने के लिए पुरुष ही मैदान में है जिसमें महिला प्रत्याशियों की पहचान वह खुद नहीं होकर उनके पति और बेटे बन रहे हैं।
पोस्टर में महिला प्रत्याशियों के साथ पति और बेटे का फोटो
जिन पंचायतों में महिला सीट रिजर्व है वहां पर महिलाओं को प्रत्याशी बनाकर मैदान में तो उतारा गया हैं। लेकिन वोट उनके नाम पर नहीं बल्कि उनके पति और बेटे के नाम पर मांगे जा रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में प्रचार के लिए लगे पोस्टर व बैनर में महिला प्रत्याशी के साथ उनके पति का फोटो भी लगा हैं। साथ ही उसमें महिला प्रत्याशी के नाम के नीचे यह भी लिखा है कि यह महिला प्रत्याशी किसकी पत्नी है। वहीं कहीं कहीं पर बेटों ने अपनी माताओं को मैदान में उतारा हैं। जिसमें उन महिला प्रत्याशियों के साथ उनके बेटे का फोटो पोस्टर व बैनर में लगा हुआ हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार प्रसार में महिला प्रत्याशी कम बल्कि परिवार के पुरुष सदस्य ही ज्यादा सक्रिय हैं। जिसमें किसी का पति तो किसी का बेटा वोट मांगने के लिए दौड़ लगा रहे हैं। ऐसे में पचास प्रतिशत सीट आरक्षित कर महिलाओं को आधी आबादी का हक दिलाने और प्रतिनिधित्व करने का मौका तो दिया गया है लेकिन महिला प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व पुरुष ही कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जब पहले प्रचार में ही पुरुष महिलाओं की पहचान बन रहे है तो फिर इनके पंच या सरपंच चुने जाने के बाद भी क्या इनका काम यहीं संभालेंगे या फिर इन महिलाओं को भी आगे आकर काम करने का मौका मिलेगा।
स्टांप रह जाती है महिलाएं
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ.आशीष का कहना है कि इस तरह के मामले हर साल सामने आते हैं। सरकार अपना काम पूरा कर महिलाओं के लिए सीट आरक्षित कर इन्हें मौका देती हैं। लेकिन आज भी समाज में पुरुष ही इनकी पहचान बने हुए हैं। जब यह जीत कर पंच या सरपंच बनती है तो यह सिर्फ एक स्टांप की तरह होती है बल्कि पंचायतों पर तो पुरुष ही कब्जा जमा लेते हैं। वहीं पूरा कामकाज भी इन महिलाओं के पति या बेटे ही संभालते हैं। जीतने के बाद इनका सिर्फ नाम रहता है बल्कि सरपंच या पंच के नाम पर इनकी पहचान गौण हो इनके पति या बेटे ही पंच या सरपंच बने रहते हैं।

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