जानकारी के अनुसार रवींद्र मंच प्रशासन ने 1 जून 2013 को पार्किंग का ठेका मैसर्स राधेश्याम अग्रवाल को 82,000 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से 30 मई 2015 तक के लिए दिया था। मंच प्रशासन ने चहेती फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर अवधि के बीच में ही बिना कोई प्रक्रिया अपनाए अप्रेल 2014 को पार्किंग ठेके के पेटे मिलने वाली राशि 82,000 से घटाकर 25,000 कर दी। यही नहीं 30 मई 2015 को ठेकेदार फर्म की टेंडर अवधि पूरी होने के बावजूद नई निविदा नहीं निकाली गई। चहेते ठेकेदार को ही 5 साल तक 25,000 रुपए प्रतिमाह की दर पर पार्किंग सौंपे रखी। यही नहीं ठेकेदार ने 2015 में तो 9 महीने का पार्किंग ठेका राशि ही जमा नहीं करवाई।
ठेकेदार को पहुंचाया 40 लाख का फायदा
आरटीआई से मिली सूचना में 40 लाख रुपए का घोटाला सामने आया है। ठेकेदार फर्म को 1 जून 201& को 82 हजार रुपए प्रतिमाह के हिसाब से ठेका दिया गया। पार्किंग ठेके से रवींद्र मंच को सालाना 9 लाख 84 हजार रुपए मिलने थे। जून 2013 से मार्च 2018 तक 5 साल की अवधि में इस दर से रवींद्र मंच को करीबन 50 लाख रुपए प्राप्त होने थे, लेकिन इन 5 साल में ठेकेदार फर्म ने सिर्फ 10 लाख ही मंच प्रशासन को दिए। इस तरह से ठेकेदार फर्म ने मंच को 40 लाख रुपए के राजस्व का नुकसान पहुंचाया।
रवींद्र मंच की ऑडिट रिपोर्ट में भी पार्किंग घोटाला सामने आया है। चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म श्रुति एंड एसोसिएट्स की ओर से 31 मार्च 2015 तक की रिपोर्ट में पार्किंग और कैंटीन से होने वाली आय 3.33 लाख दर्शाई है। 31 मार्च 2016 तक की रिपोर्ट में पार्किंग—कैंटीन के पेटे कमाई 1.50 लाख और 31 मार्च 2017 तक की रिपोर्ट में आय 2 लाख दशाई गई है। इन 3 साल में पार्किंग के पेटे रविन्द्र मंच को 3.45 लाख की आय हुई। जबकि निविदा शर्तों के मुताबिक 29.52 लाख रूपए होनी थी।
गई है।
दीपक गुप्ता, रंगकर्मी एवं आरटीआई कार्यकर्ता