ऐसा माना जाता है कि अपनी मन्नत पूरी करने एवं सोचे काम को पूर्ण करने के लिए यहां पर आकर हर श्रद्धालु माता से प्रार्थना करता है और कार्य में सफलता मिलने के बाद यहां पर अपनी ओर से जो भी बोलमा पूरी की गई हो उस अनुसार भेंट भी चढ़ाते हैं। कोई भी मांगलिक कार्य हो तो लोग माता के दरबार में पाती मांगने आते हैं। पुजारी बताते हैं कि जेल या पुलिस अभिरक्षा से रिहा होने पर कई अपराधी यहां बोलमा स्वरूप हथकड़ियां व बेड़ियां चढ़ाते हैं। यह हथकड़ियां वह खुद बना कर लाते हैं।
अरावली से घिरा माता का दरबार
यह मंदिर तीन दिशाओं से अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। मंदिर की दीवार के पश्चिम दिशा में कई फीट गहरी खाई है और आगे घना जंगल है। माता के मंदिर के चारों तरफ से घने जंगल हैं। यहां बारिश के दिनों में मंदिर से नीचे 300 फीट गहरे दर्रे में झरना गिर कर प्राकृतिक नजारा बनाता है।
यह मंदिर तीन दिशाओं से अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। मंदिर की दीवार के पश्चिम दिशा में कई फीट गहरी खाई है और आगे घना जंगल है। माता के मंदिर के चारों तरफ से घने जंगल हैं। यहां बारिश के दिनों में मंदिर से नीचे 300 फीट गहरे दर्रे में झरना गिर कर प्राकृतिक नजारा बनाता है।
माता अन्नपूर्णा बनी जोगणिया माता
किसी समय यहां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर था। कुछ दूरी पर हाड़ा राजाओं का किला था, जिसे बम्बावता गढ़ के नाम से जाना जाता था। यहां राजा देवा हाड़ा ने देवी अन्नपूर्णा को अपनी बेटी की शादी में आशीर्वाद देने को आमंत्रित किया। देवी अन्नपूर्णा ने राजा की परीक्षा लेने के लिए जोगन का वेश धारण किया और विवाह समारोह में पहुंचीं। देवी अन्नपूर्णा को इस रूप में हाड़ा राजा नहीं पहचान सके। देवी अन्नपूर्णा क्रुद्ध होकर वहां से चली गईं और पुन: सुंदर युवती का रूप धारण कर समारोह में प्रवेश किया। समारोह में आए अनेक राजा उनके सौंदर्य पर मुग्ध हो गए और अपने साथ ले जाने के लिए लड़ने लगे। आपस में युद्ध हुआ और देवा हाड़ा इस युद्ध में घायल हुआ और अपने राज्य से हाथ धो बैठा। यहां अन्नपूर्णा माता जोगन बन हाड़ा राजा के यहां जाने से जोगणिया माता कहलाने लगी।
किसी समय यहां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर था। कुछ दूरी पर हाड़ा राजाओं का किला था, जिसे बम्बावता गढ़ के नाम से जाना जाता था। यहां राजा देवा हाड़ा ने देवी अन्नपूर्णा को अपनी बेटी की शादी में आशीर्वाद देने को आमंत्रित किया। देवी अन्नपूर्णा ने राजा की परीक्षा लेने के लिए जोगन का वेश धारण किया और विवाह समारोह में पहुंचीं। देवी अन्नपूर्णा को इस रूप में हाड़ा राजा नहीं पहचान सके। देवी अन्नपूर्णा क्रुद्ध होकर वहां से चली गईं और पुन: सुंदर युवती का रूप धारण कर समारोह में प्रवेश किया। समारोह में आए अनेक राजा उनके सौंदर्य पर मुग्ध हो गए और अपने साथ ले जाने के लिए लड़ने लगे। आपस में युद्ध हुआ और देवा हाड़ा इस युद्ध में घायल हुआ और अपने राज्य से हाथ धो बैठा। यहां अन्नपूर्णा माता जोगन बन हाड़ा राजा के यहां जाने से जोगणिया माता कहलाने लगी।
700 साल तक होती थी पशुबलि
यहां करीब 700 वर्षों से पशु बलि दी जाती थी। जैन साध्वी यश कंवर ने यहां पशु बलि बंद कराने के लिए गांव- गांव जाकर लोगों को पशु बलि बंद कराने के लिए प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा से पशु बलि बंद हुई।
यहां करीब 700 वर्षों से पशु बलि दी जाती थी। जैन साध्वी यश कंवर ने यहां पशु बलि बंद कराने के लिए गांव- गांव जाकर लोगों को पशु बलि बंद कराने के लिए प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा से पशु बलि बंद हुई।