काल बनकर आए थे कुत्ते हाल ही मानसरोवर की पत्रकार कॉलोनी में स्ट्रीट डॉग्स के हमले में नौ साल का मासूम लहूलुहान हो गया। वायरल हो रहे वीडियो से तो यही लगा मानो घर के द्वार पर ही काल बैठा हो। दहलीज पार करते ही बालक को निशाना बना लिया गया। जिन भूखे कुत्तों को रोटी देने की उसने हिमाकत की उन्होंने ही एकराय हो मासूम को घेर हमला कर दिया। गुर्राते हुए कुत्ते बच्चे को घसीट ले गए और नोंच डाला। साठ सैकंड में 40 से ज्यादा जगहों पर दांत गड़ा दिए। किस्मत अच्छी रही कि वहां से गुजर रहीं दो महिलाओं ने चीख-चिल्लाहट सुनकर बहादुरी दिखाई और कुत्तों से मासूम को मुक्त करवाया। कुत्ते तो चले गए लेकिन दक्ष को उम्र भर का डर दे गए। आलम यह है कि घर में कैद बच्चा अब तो बाहर भौंकने की आवाज से भी कांप उठता है। जख्म भरने में तो वक्त लगेगा लेकिन दिल में जो खौफ उतर आया उससे मुक्ति शायद ताउम्र ना मिल सके।
काट खाया कान अस्पताल में तड़पते बच्चे के शरीर से रिसते खून की तस्वीरें अभी लोग भूले भी नहीं कि फिर वैसा ही मंजर झालाना डूंगरी से सामने आ गया। आठ साल का कुणाल दुकान से बिस्किट खरीदकर लौट रहा था। उसके हाथ में बिस्किट देखते ही गली का कुत्ता उसके पीछे पड़ गया। डर के कारण जब वह घर की और भागने लगा तो कुत्ते ने छलांग लगा उसको दबोच लिया। बच्चे ने जब बिस्किट नहीं छोड़ा तो गुस्से में उसका कान काट खाया। जगह-जगह दांत गड़ा दिए। बमुश्किल लोगों ने कुत्ते को भगाया और घायल को घर पहुंचाया। बच्चे की हालत गंभीर है। चिकित्सकों ने फिलहाल उसकी मरहम पट्टी कर दी। लेकिन आने वाले दिनों में कान की सर्जरी होगी। परिजन स्तब्ध हैं। जो बच्चा घर से चंद मिनट पहले हंसता-खेलता निकला था वो आंखों में खौफ, जबान पर खामोशी का ताला लेकर लौटा है। अब तो घर वालों को यही डर सता रहा है कि कुणाल कभी सामान्य हो पाएगा? क्या उसके सुनने की शक्ति पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा? क्या फिर से ये सब हो गया तो? ये वो सवाल हैं जो सिर्फ उनके नहीं बल्कि शहर के हर बाशिंदे के मन में उमड़ रहे हैं। चूंकि आज कुणाल तो कल कोई और शिकार हो सकता है।
विकराल रूप ले रही समस्या स्मार्ट शहर की यह समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। दो-दो नगर निगम और अफसरों की फौज के बावजूद लगता है कोई भी आवारा कुत्तों के इन हमलों को लेकर गंभीर नहीं है। हमलों पर सिर्फ आंसू बहाने और दुख जताने से आगे बात बढ़ ही नहीं पा रही। जबकि मामले थाने, कोर्ट-कचहरी तक पहुंच रहे हैं। वक्त आ गया है कि स्थानीय निकाय इस समस्या की गंभीरता समझे। बेतहाशा बढ़ती आवारा कुत्तों की समस्या से शहर को मुक्त करने पर मंथन करे। कानूनी दायरे में रहकर क्या कुछ संभव है उस पर विचार करे। रंग-रोगन करने और नई इमारतों से ही शहर में स्मार्टनेस नहीं आएगी बल्कि समस्याओं के स्थायी हल से भी यह संवरेगा।