नागौर जिले के कोलाडूंगरी गांव निवासी 90 वर्षीय सेवानिवृत्त राइफलमैन पदम सिंह राठौड़ कहते हैं, 1944 में अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुआ था। पाकिस्तान के झेलम में ट्रेनिंग पूरी कर जापान, तुर्की, जम्मू-कश्मीर, बाड़मेर, जैसलमेर समेत कई जगह तैनात रहा। वर्ष 1945 में अंग्रेजों ने तुर्की में दुश्मनों से लोहा लेने भेजा। वर्ष 1948 में कश्मीर में पोस्टिंग मिली, जहां परमवीर चक्र प्राप्त पीरू सिंह शेखावत के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना व कबाइलियों से हुए युद्ध का हिस्सा बना। इस युद्ध में पूरी रेजीमेंट शहीद हो गई, मैं और 2 अन्य सैनिक ही जिंदा बचे। वर्ष 1959 में सेवानिवृत्ति के बाद पुलिस में भर्ती हुआ। कई पीढिय़ां देशसेवा से जुड़ी हैं। दो बेटे भी सेवा में रह चुके हैं। अभी पौत्र अभी आर्मी में कैप्टन है।
खातीपुरा निवासी 90 वर्षीय रिटायर्ड सूबेदार शंकर सिंह नाथावत बताते हैं, मैं 16 साल की उम्र में ब्रिटिश सेना में भर्ती हुआ था। अम्बाला से ट्रेनिंग लेने के बाद साउथ देवलाली में आर्टी लुकेटिंग रेजिमेंट में पोस्टिंग मिली। एक साल बाद विभाजन हुआ तो कश्मीर में लगाया गया। वहां कत्लेआम का माहौल था इसलिए घर पर मैंने बताया ही नहीं कि मुझे कश्मीर में पोस्टिंग मिली है। वर्ष 1948 में कश्मीर में तैनात था। वहां जो खूनी मंजर देखा, वह आज भी याद है। वर्ष 1962 में मुझे भारतीय सेना का प्रथम लोकेटर सम्मान तत्कालीन राष्ट्रपति ने दिया था। 1965 में हमारी बटालियन ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर उसकी फौज को इच्छुगल कैनाल तक खदेड़ा था। 10 साल से हर साल गणतन्त्र दिवस व स्वतन्त्रता दिवस पर घर पर ध्वजारोहण करता हूँ।
विद्युतनगर-ए निवासी शोभनाथ सिंह 31 साल से हर साल 15 अगस्त व 26 जनवरी को घर पर झंडारोहण कर रहे हैं। शुरुआत में लोगों को निमंत्रण दिया तो लोग चौंक गए। अब लोग स्वयं आते हैं।