वैश्विक स्तर पर पिछले सात दशकों में प्लास्टिक के उत्पादन में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है । इस दौरान तकरीबन 8.3 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश के चार महानगरों दिल्ली में रोज़ाना 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है।
इसमें से लगभग 6.3 अरब टन प्लास्टिक कचरे का ढेर बन चुका है, इसमें से केवल 9 फीसदी हिस्से को ही अभी तक रिसाइकिल किया जा सका है।
प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।
फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे.धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे.छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।
यह जानना भी जरूरी है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्व होते हैं। इनका आकार 5 मिलीमीटर से अधिक नहीं होता है।
इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियाँ इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो ने जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिए असुरक्षित बताया है। अधिकांशत: प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ो हजारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार.विमर्श किए जाने की आवश्यकता है।
2022 तक प्लास्टिक की खपत हो जाएगी दोगुनी
94.6 लाख टन हर साल देश में प्लास्टिक कचरा
38 लाख टन कचरा सिंगल यूज प्लास्टिक
170 करोड़ टन प्लास्टिक की सालाना खपत
26 हजार टन प्लास्टिक हर दिन निकल रहा