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अदम्य साहस…भारतीय रेल की प्रादेशिक सेना ट्रेन लेकर साल 1971 में घुस गई थी पाकिस्तान में

locationजयपुरPublished: Aug 15, 2022 01:23:59 pm

Submitted by:

Arvind Palawat

भारतीय रेल का काम केवल यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह छोड़ना या मालगाड़ी से माल गंतव्य तक पहुंचाना ही नहीं है। बल्कि भारतीय रेल का काम सीमाओं को सुरक्षित करने में भारतीय सेना की मदद करना भी है।

भारतीय रेल की प्रादेशिक सेना ट्रेन लेकर साल 1971 में घुस गई थी पाकिस्तान में

भारतीय रेल की प्रादेशिक सेना ट्रेन लेकर साल 1971 में घुस गई थी पाकिस्तान में

अरविंद पालावत/जयपुर। भारतीय रेल का काम केवल यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह छोड़ना या मालगाड़ी से माल गंतव्य तक पहुंचाना ही नहीं है। बल्कि भारतीय रेल का काम सीमाओं को सुरक्षित करने में भारतीय सेना की मदद करना भी है। जी हां, भारतीय रेल की अपनी एक प्रादेशिक सेना होती है। इस टेरिटोरियल आर्मी में सेना के अधिकारी और जवान युद्ध या विपरित परिस्थितियों में रेल की कमान संभालते हैं और युद्ध स्थल तक हथियार, रसद या अन्य सामान पहुंचाते हैं। इस आपात स्थिति में ट्रेन के चालक से लेकर गार्ड तक के सभी काम भारतीय रेल की सेना के जवान व अधिकारी ही करते हैं। साथ ही रेलवे को आंतरिक रूप से भी सुरक्षित रखना इस सेना का काम होता है। वर्ष 1971 में यही सेना पाकिस्तान में ट्रेन लेकर भारतीय सेना की मदद के लिए चली गई थी। रेल की इस सेना के अदम्य साहस, पराक्रम और वीरता के कुछ किस्से राजस्थान पत्रिका को बताए हैं कैप्टन शशिकिरण, कैप्टन अमित स्वामी और कैप्टन शशांक ने।
1949 में हुई थी स्थापना

यूं तो भारतीय रेल की सेना आजादी के पहले से भी काम कर रही थी। लेकिन, देश आजाद होने के बाद इसे प्रादेशिक सेना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत 1949 में की गई थी। इसे रेलवे इंजीनियर्स रेजीमेंट भी कहा जाता है। इस सेना का मुख्य काम युद्ध गतिविधियों के दौरान अग्रिम क्षेत्रों में रेल संचार की व्यवस्था करना होता है। वर्तमान में इस सेना की छह यूनिट अलग—अलग जगहों पर कार्य कर रही है।
हर साल होती है ट्रेनिंग

तीनों अधिकारियों ने बातचीत में बताया कि रेल की सेना के अधिकारियों को आर्मी के साथ ही रेलवे की आॅपरेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है। यानी युद्ध अभ्यास से लेकर हथियारों को चलाना, आर्मी इंटिलेजेंस आदि की कड़ी प्रैक्टिस कराई जाती है। इसके साथ ही रेलवे से जुड़ी सभी तरह की आॅपरेशनल ट्रेनिंग भी सेना के अधिकारियों से लेकर जवानों तक सभी को दी जाती है। इसमें ट्रेन को चलाने से लेकर उसके मेंटिनेंस एवं अन्य काम शामिल होते है। यह ट्रेनिंग इसलिए जरूरी होती है कि युद्ध की स्थिति में जहां तक रेलमार्ग होता है वहां तक सेना की मदद के लिए स्पेशल ट्रेन भेजी जाती है। यह पूरी ट्रेन प्रादेशिक सेना के ही अधीन होती है। उस दौरान एक भी सामान्य रेलकर्मी नहीं होता है।

वीरता के वो तीन किस्से…

1. जानें क्या हुआ जब बमबारी के बीच पाकिस्तान में घुस गई भारतीय रेल

उत्तर पश्चिम रेलवे के सीपीआरओ कैप्टन शशिकिरण ने टेरिटोरियल आर्मी की वीरता का किस्सा बताते हुए कहा कि 1971 की जंग में अजमेर टीए बटालियन 1033 ने कुछ ऐसा किया कि वो हमेशा याद रखा जाएगा। उस दौरान भारतीय सेना सिंध की ओर तेजी से कब्जा कर चुकी थी और उन्हें पानी, असलहें सहित अन्य सामान की सप्लाई तुरंत चाहिए थी। पानी की ज्यादा जरूरत इसलिए थी, क्योंकि यह रेगिस्तानी इलाका था। ऐसे में ट्रेन को बाड़मेर के मुनाबाव रेलवे स्टेशन व पाकिस्तान के खोखरापार होते हुए फिर परचे की बेरी रेलवे स्टेशन तक पहुंचना था। युद्ध इतना भीषण था कि रेलपटरी भी मिसिंग हो गई। लेकिन, रेलवे की सेना के जांबाजों ने एक दिन में ही 10 किलोमीटर की मिसिंग लिंक तैयार कर दी। मिसिंग लिंक तैयार होने पर ट्रेन की जिम्मेदारी मिली उदयपुर के रहने वाले दुर्गाशंकर पालीवाल को। वे 25 बोगियों वाली ट्रेन लेकर पाकिस्तान रवाना हुए। पाकिस्तानी सीमा के खोखरापार से आगे पहुंचते ही छह सेबर जेट भारतीय ट्रेन को तबाह करने पहुंच गए। ऐसे में अदस्य साहस और सूझबूझ का परिचयन देते हुए ट्रेन की गति हैदराबाद सिंध की तरफ बढ़ा दी। वहीं, एक बम की चपेट में आने से दुर्गाशंकर का हाथ झुलस गया, लेकिन ट्रेन नहीं रूकी। दुर्गाशंकर तेजी से ट्रेन को 25 किलोमीटर उल्टा लेकर आए और फिर 15 मिनट में ही पूरा सामान उतार दिया गया।
2. उड़ीसा के सुपर साइक्लोन में दिखाया अदम्य साहस

कैप्टन अमित स्वामी ने भारतीय रेल की सेना की वीरता के किस्से बताते हुए कहा कि वर्ष 1999 में उड़ीसा में सुपर साइक्लोन आया। उड़ीसा में आया तूफान इतना प्रलयंकारी था कि आज तक इसकी तबाही के निशान यहां देखने के लिए मिल ही जाते हैं। उस दौरान सभी तरह का ट्रांसपोर्ट बंद हो गया और जगह—जगह लोग फंसे हुए थे। उन लोगों की मदद के लिए उस समय भारतीय रेल की प्रादेशिक सेना आगे आई और बचाव कार्यों में युद्ध स्तर पर जुट गए।
3. रेलवे के कर्मचारियों ने हड़ताल की तो टीए ने संभाला मोर्चा

कैप्टन शशांक बताते है कि भारतीय रेलवे की प्रादेशिक सेना केवल सीमाओं की नहीं, बल्कि रेलवे की आंतरिक सुरक्षा भी करती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिला साल 1991 में। उस समय रेल व्हील फैक्ट्री, बैंगलुरू में कर्मचारियों ने हड़ताल कर ली थी। उस हड़ताल के कारण रेलवे का प्रोडक्शन कम हो सकता था।
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