रिक्रूट, ट्रेंड, डिप्लॉय मॉडल आरएसएलडीसी स्पेशल प्रोजेक्ट्स के तहत इस योजना को अंजाम देगा। इस नए प्रशिक्षण मॉडल को रिक्रूट, ट्रेंड एंड डिप्लॉय नाम दिया गया है। यानि ये संगठन या कम्पनियां भर्ती, प्रशिक्षण और रोजगार तक का काम खुद ही करेंगी। पिछले दिनों मुख्य सचिव ने भी बैठक के दौरान इस मॉडल की समीक्षा की थी।
पत्रिका की मुहिम का असर पत्रिका ने अपने बने नया भारत अभियान में प्रवासी श्रमिकों के पलायन और रोजगार के मुद्दे को जोर—शोर से उठाया है। प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले, यह अभियान की सोच में शामिल है। अभियान के बाद सरकार ने पहले प्रवासी और मौजूदा श्रमिकों की स्किलवार मैपिंग शुरू की थी। अब उनके प्रशिक्षण और रोजगार की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।
कुशल हाथों को मिलेगा उचित काम इस प्रशिक्षण मॉडल को मंजूरी के बाद प्रदेश में लौटे प्रवासी श्रमिकों के कौशल को उचित काम मिलने का रास्ता भी खुला है। इन प्रवासियों में से अधिकतर किसी न किसी स्किल में दक्ष हैं, लेकिन रोजगार नहीं होने के कारण उनको फिलहाल मनरेगा में अकुशल श्रेणी के कार्य करने पड़ रहे हैं। इस मॉडल से ये कुशल मजदूर अपने कौशल को बढ़ा सकेंगे और इसके अनुरूप ही रोजगार पा सकेंगे।
52 लाख की श्रम शक्ति मौजूद कुल पंजीकृत मजदूर— 52.66 लाख
प्रवासी पंजीकृत मजदूर— 13.13 लाख
सनिर्माण श्रमिक— 22.33 लाख
रोजगार पोर्टल पर पंजीकृत— 12.73 लाख
आरएसएलडीसी से प्रशिक्षित— 3.37 लाख
आईटीआई प्रशिक्षित— 1.21 लाख
नए पंजीकरण— 1058
श्रम सचिव नीरज के. पवन से बातचीत ट्रेनिंग कितने दिन की और शुल्क का भुगतान कैसे होगा ? विस्तृत गाइडलाइन तैयार की जा रही है। विभिन्न कौशल के अनुसार एक से तीन माह का ट्रेनिंग मॉड्यूल हो सकता है। केन्द्र और राज्य की विभिन्न कौशल योजनाओं में प्रशिक्षण प्रदाताओं को देय शुल्क ही इस योजना में दिया जाएगा। केन्द्र ने भी हमारी योजना को सराहा है।
क्या और संगठन भी इसमें जुड़ सकते हैं? अवश्य, हमने इसके प्रावधान किए हैं। कोई भी औद्योगिक संगठन, उनके जिला चैप्टर, विश्वविद्यालय और बड़े उद्योग टीपी बन सकते हैं। क्या कोई इकाई अपने स्तर पर भी टीपी बन सकती है?
यदि कोई इकाई प्रशिक्षण के बाद नौकरी देना सुनिश्चित करती है और औद्योगिक संगठन इसकी सिफारिश करता है तो ऐसा हो सकता है। रोजगार का विश्वास दिलाने के लिए संगठन की सिफारिश जरूरी है।
सरकार नए प्रावधान का क्या संभावित आउटपुट मान रही है?
हम मान कर चल रहे हैं कि बड़ी कम्पनियां यदि प्रशिक्षण देती हैं तो वह रोजगार की व्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक जिम्मेदारी से करेंगी। अभी ट्रेनिंग पार्टनरों फर्मों में फर्जीवाड़ा भी सामने आया था। सरकार का मानना है कि श्रमिकों को सही प्रशिक्षण और निश्चित रोजगार मिले।