बिना करंट ही दौड़ रहा मीटर
जयपुरPublished: Jul 30, 2021 01:39:09 am
— कंपनियों का मौन, विशेषज्ञ उठा रहे सवाल— कंपनियों में ठेकेदारी बढ़ने का संकेत, जयपुर की दरों पर सुनवाई आज
Adani Power 5200 करोड़ हारने के बाद Discom ने एपिलिएट का खटखटाया दरवाजा,Adani Power 5200 करोड़ हारने के बाद Discom ने एपिलिएट का खटखटाया दरवाजा
जयपुर। बिजली की सप्लाई बंद बताकर 100 से ज्यादा फीडरों में राजस्व का मीटर दौड़ा रही विद्युत वितरण कंपनियों ने अब ठेकेदारी और बढ़ने का संकेत दिया है। बिलिंग से लेकर वसूली तक का काम ठेके पर दे चुकी बिजली कंपनियों ने विद्युत विनियामक आयोग को निजीकरण और बढ़ाने की संभावना तलाशने की जानकारी दी है। आयोग को यह भी बताया गया है कि तमाम सुधारों के बावजूद जयपुर और जोधपुर विद्युत वितरण कंपनिया अजमेर की कंपनी से आगे है। इन सहित विभिन्न पहलुओं से संबंधित जयपुर विद्युत वितरण कंपनी की याचिका पर आयोग में शुक्रवार को सुनवाई होगी।
विद्युत वितरण कंपनियों के स्थाई शुल्क सहित अन्य प्रभारों में बढ़ोतरी के आग्रह वाली याचिकाओं पर विशेषज्ञ गंभीर सवाल उठा रहे है। उनका कहना है कि समस्या का समाधान अकेले निजीकरण बढ़ाने से नहीं होगा, बल्कि कर्ज का भार घटाकर ब्याज का बोझ भी कम करना होगा। वसूली का काम ठेके पर होने के बावजूद सरकारी विभागों पर ही डेढ़ हजार करोड़ रुपए से अधिक बकाया है। 100 से ज्यादा फीडरों में बिजली के मीटरों की खपत जीरो बताकर राजस्व वसूली की जा रही है। इतने ही फीडरों में बिजली कंपनियों को बिजली की खपत से ज्यादा राजस्व मिल रहा है। शुक्रवार को सुनवाई में इन सहित अनेक सवाल उठने वाले हैं।
राजस्व का घाटा बताओ
विशेषज्ञों की राय में जिस तरह बिजली की छीजत सार्वजनिक करने से यह एक मुद्दा बन गया है, उसी तरह बिजली राजस्व में घाटे का खुलासा करें तो उपभोक्ताओं पर भार कम किया जा सकता है। गुरुवार को जोधपुर डिस्कॉम की सुनवाई के दौरान उपभोक्ता आंदोलन से जुड़े और राज्य उपभोक्ता आयोग के पूर्व सदस्य लियाकत अली ने कहा कि बिजली कंपनियों ने उपभोक्ताओं को राहत के लिए योजनाएं चला रखी हैं, लेकिन उनके बारे में उपभोक्ताओं को पता ही नहीं है। बिजली कंपनी में मुख्य अभियंता रहे डी पी चिरानिया शुक्रवार को आयोग में उपभोक्ताओं का पक्ष रखने वाले हैं, उनका कहना है कि बिजली राजस्व लीकेज का खुलासा होगा तो प्रबंधन में सुधार के रास्ते खुलेंगे। अभी बकाया समय पर नहीं आने और कर्ज के ब्याज के बोझ से कंपनियां संकट में हैं, जिसकी ओर कंपनियों का ध्यान ही नहीं है। महाराष्ट्र का सिस्टम राजस्थान से बेहतर है, इसीलिए वहां स्थाई शुल्क के मामले में उपभोक्ता राहत महसूस करते हैं।