ग़ालिब का ‘काबा-ए-हिदोस्तां’
प्रसिद्ध शायर निज़ाम ने ग़ालिब के धर्म निरपेक्ष पहलू को उकेरते हुए कहा कि बनारस में ग़ालिब ने फारसी मसनवी चरागे-ए-दैर लिखा। इसमें 108 शेर थे, बताते हैं ज्यादा थे, लेकिन ग़ालिब ने इतने ही रखे। निज़ाम ने कहा, ‘तमाम हिंदू इसका महत्त्व जानते हैं। माला में 108 मनके ही होते हैं।’निज़ाम बताते हैं, ग़ालिब ने काशी (बनारस) को हिन्दुओं की इबादतगाह और हिन्दुस्तान का काबा करार दिया। उन्होंने ग़ालिब का बनारस ( Banaras ) पर कहा शेर…
‘इबादतखाना ए नाकूसियांस्त। हमाना काबा ए हिंदोस्तानांस्त।’ पेश किया। जिसका मतलब है कि यह शंख पूजने वालों का स्थल और हिदोस्तां का काबा है।
शेर पढ़ते ही दाद कैसी
देश-दुनिया के मशहूर शायर निज़ाम ने हसरत मोहानी शेर… शेर दर-अस्ल हैं वही ‘हसरत’ सुनते ही दिल में जो उतर जाए…सुनाते हुए कहा कि एक मिसरा बनाने में महीनों लग जाते हैं, तो लोग एक पल में उसकी गहराई को कैसे समझ सकते हैं। इधर, शेर पढ़ा और उधर तपाक से ‘वाह’ कहें, यह कैसे हो सकता है।सवाल हमेशा बना रहता है
उन्होंने कहा कि इस सेमिनार के दौरान यह बात बार—बार उठी कि ग़ालिब शायरी में सवाल उठाते थे। दरअसल, सवाल हमेशा कायम और वही रहता है, जवाब बदलते रहते हैं। सवाल ज़माने के साथ नहीं बदलता, जवाब बदलते हैं। उन्होंने कहा कि शेर की समझ जरूरी है, तभी उसे सही पढ़ और सुन सकते हैं। उन्होंने बताया कि अज्ञेय ने कहा था कि आज के कवि को दूसरे कवि की तो क्या, अपनी कविता को भी ठीक से पढ़ना नहीं आता। हर बड़ा शायर सवाल उठाता है। जिसके पास सवाल नहीं वह बड़ा शायर नहीं। वह जवाब नहीं लेता, आपकी सवाल को समझने की तौफीक जगाता है। हर सदी सवाल लेकर आती है, कुछ सवाल इटरनल होते हैं।फिल्मी और इल्मी शायरी
आज तो वही शायर बड़ा माना जाता है जो फिल्मों में हो, जो गाया जाता है। एक फिल्मी शायरी होती है, एक इल्मी शायरी होती है। अस्ल अस्ल है, नकल नकल है। उन्होंने तीन सौ साल पहले कही गई एक विद्वान की बात, ‘फन हमारे जमाने में गलत रास्ते पर चला गया है’ बताते हुए कहा कि जब तक फन सही रास्ते पर नहीं आएगा, तब तक कुछ नहीं हो सकता।ग़ालिब के कलाम का तर्ज़ुमा
शायर शीन काफ़ का निजाम ने बताया कि ग़ालिब के कलाम का संस्कृत में तर्ज़ुमा इलाहाबाद के जगन्नाथ पाठक ने किया था, जिसे साहित्य अकादमी ने अवॉर्ड दिया था। पाठक का इंतकाल तीन साल पहले हो गया था। राजस्थान में झुंझुनूं के यूसुफ झुंझुनूंवी ने राजस्थानी में किया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत का तर्ज़ुमे की खासियत है कि करीब-करीब उसी बहर का इस्तेमाल किया है, जिसका ग़ालिब ने किया था।उन्होंने इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए राजस्थान उर्दू अकादमी के सचिव मोअज्जम अली और जवाहर कला केंद्र के अतिरिक्त महानिदेशक फुरकान खान को मुबारकबाद दी। साथ ही, सेमिनार में पढ़े गए सभी मक़ालों की तारीफ की।