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एक वाक्य ने बदल दिया था जिंदगी का मकसद, मुनि तरुण सागर ने ऐसे अपनाई थी संत परंपरा

locationजयपुरPublished: Sep 01, 2018 05:15:49 pm

Submitted by:

Mridula Sharma

जलेबी था पसंदीदा भोजन, स्कूल से घर आते समय में मिला था जिंदगी का मकसद

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एक वाक्य ने बदल दिया था जिंदगी का मकसद, मुनि तरुण सागर ने ऐसे अपनाई थी संत परंपरा

जयपुर. क्रांतिकारी संत के नाम से चर्चित जैन मुनि तरुण सागर का 51 वर्ष की उम्र में शनिवार तड़के निधन हो गया। पूर्वी दिल्ली के कृष्णानगर इलाके में स्थित राधापुरी जैन मंदिर में सुबह करीब 3 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। मुनि तरुण सागर की जिंदगी से जुड़े पल आज उनके अनुयायी याद कर रहे हैं। एक बार खुद मुनि तरुण सागर ने अपने संत परंपरा अपनाने के पीछे के वाकये का जिक्र किया था। दरअसल मुनि को जलेबी खाना बेहद पसंद था।
उन्होंने खुद बताया था कि जब मैं छठी कक्षा में पढ़ता था, तब एक दिन स्कूल से घर जाते समय रास्ते में मैं पास ही एक होटल पर बैठकर जलेबी खा रहा था। नजदीक ही आचार्य पुष्पदंतसागर के प्रवचन चल रहे थे। मैं अपनी जलेबी खाने में व्यस्त था कि मेरे कानों ने एक वाक्य सुना, वह था ‘तुम भी भगवान बन सकते हो’। यह वाक्य मेरे कानों में पड़ा और मुझे अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया। बस फिर क्या था मैंने 13 साल की उम्र में संत परंपरा अपना ली। मुनि तरुण सागर को सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से अपनी राय रखने के लिए पहचाना जाता है।


जैन मुनि तरुण सागर का जन्म 1967 में मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम पवन कुमार जैन था। जैन संत बनने के लिए उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में 8 मार्च 1981 को घर छोड़ दिया था। मुनि तरुण सागर ने 20 साल की उम्र में दिगंबर मुनि दीक्षा ली। कड़वे प्रवचन नाम से उनकी पुस्तक भी प्रकाशित हुई। उन्होंने तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनकी 10 लाख से अधिक प्रतियां अब तक बिक चुकी हैं।
जैन मुनि तरुण सागर के देवलोक गमन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत सभी बड़े नेताओं ने भी शोक व्यक्त किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया कि मुनि तरुण सागर के निधन की खबर मिलने के बाद मुझे बहुत दुख हुआ। ऐसे महान विचार देने वाले मुनि के प्रति श्रद्धासुमन समर्पित करता हूं। लोग इनको हमेशा याद रखेंगे।

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