रात के समय भेजते हाथी सामने आया कि हाथियों को रात के समय ट्रक में लोड कर भेजा जाता है। अब तक ऐसा ही हुआ है। इनको भेजने का सिलसिला बरकरार है। यही चलता रहा तो रिसायतकाल से चली आ रही हाथीगांव की परंपरा समाप्त हो जाएगी। अब यहां महज 87 हाथी ही रह गए हैं। कोरोना काल से पहले सवा सौ से ज्यादा हाथी थे।
डीएफओ बोले- अभी नहीं दी स्वीकृति इस मामले में डीएफओ अजय चित्तौड़ा का कहना है कि अभी हाथियों के परिवहन की स्वीकृति नहीं दी है। हाथी मालिकों से न्यायालय की स्वीकृति मांगी गई है। आश्चर्य है कि स्वीकृति नहीं देनी थी तो, उक्त हाथियों को स्वास्थ्य परीक्षण क्यों कराया गया। इतना ही नहीं, इससे पहले भेजे गए हाथियों की न्यायालय से स्वीकति क्यों नहीं मांगी गई। ऐसे में इसमें वन विभाग के उच्च अधिकारियों की भी मिली भगत की बू आ रही है।
हाथी मालिक बेखौफ, सरकार से ले रहे फंड इस मामले में हाथी मालिक पूरी तरह से बेखौफ नजर आ रहे हैं। वे सरकार से राहत फंड के साथ पूरी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं फिर भी हाथी गुजरात भेज रहे हैं। यही चलता रहा था वो दिन दूर नहीं जब हाथी गांव खाली हो जाएगा।