यहां जगतपुरा स्थित आशियाना अपार्टमेंट के स्थानीय लोगों ने तो अवनी का शानदार तरीके से स्वागत किया। अपार्टमेंट के मुख्य द्वार पर अवनी का स्वागत बैंड और ढोल-ताशे की मधुर ध्वनि के साथ हुआ। इसके बाद यहां के निवासियों ने उन्हें गुलदस्ते देकर और माला व साफा पहना कर अभिनन्दन किया। ये सिलसिला यहीं नहीं थमा। इसके बाद वर्ल्ड कप में पदक विजेता अवनी की आरती उतारी गई और फिर कार से पूरी सोसाइटी का चक्कर लगाकर उन्हें बधाइयां दीं। इस अवसर पर अवनी के साथ दुबई से लौटीं उनकी मां का भी स्वागत किया गया।
इस विजेता खिलाड़ी की इस उपलब्धि पर उसकी पीठ थपथपाने के लिए यहां जगतपुरा शूटिंग रेंज के निदेशक अजय सिंगा, राजस्थान पैरालंपिक समिति के महासचिव दिनेश उपाध्याय सहित कई प्रशासनिक अफसर भी पहुंचे। मां-पिता-कोच को दिया सफलता का श्रेय
अवनी ने कहा कि यदि कोई भी किसी भी काम में अपना शत-प्रतिशत देता है तो उसे सफलता अवश्य मिलती है। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेया अपनी मां श्वेता लेखरा, पिता प्रवीण लेखरा और कोच चंदन सिंह को दिया।
अवनी के पिता प्रवीण लेखरा और मां श्वेता लेखरा ने कहा कि पेरेंट्स को अपने बच्चों पर भरोसा करना चाहिए, तो वो किसी भी लक्ष्य को पा सकते हैं। अवनी के परिजनों ने विश्व कप में पहली बार पैराशूटर्स की टीम भेजने के लिए पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष राव इंदरजीत सिंह का आभार जताया और पैरालंपिक में भी भारतीय टीम भेजने की आशा जताई।
अपने आप को किया साबित अवनी के कोच चंदन सिंह का कहना है कि डिसेबल होने के बावजूद अवनी में गजब का आत्मविश्वास है। उन्होंने कहा कि दो साल के बहुत कम समय में अवनी ने विश्व कप में व्यक्तिगत रजत पदक जीत कर अपने आप को साबित कर दिया है।
कोच सिंह का कहना है कि अवनी पैरालंपिक तक का सफर तय करने की क्षमता रखती है और उन्हें विश्वास है कि वह ओलंपिक में पदक जीतकर लाएगी। अवनी और उनके कोच ने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं।
अभिनव की बायोग्राफी से मिली प्रेरणा अवनी ने बताया एक्सीडेंट के बाद उनके पिताजी ने उन्हें अभिनव बिन्द्रा की बायोग्राफी लाकर दी। उससे उनकी निशानेबाजी में रुचि जगी और वह घर के पास में ही स्थित शूटिंग रेंज पर जाकर अभ्यास करने लगी। उन्होंने बताया कि कोच के निर्देशन के अनुसार अभ्यास करने के साथ मैंने अपना शत-प्रतिशत देना शुरू किया तो मुझे सफलताएं मिलती चली गईं।
सदमे से उबरने में लगा थोड़ा समय अवनी के पिता प्रवीण लेखरा ने बताया कि 2012 में वह धौलपुर में कार्यरत थे। उसी दौरान जब वह जयपुर से धौलपुर जा रहे थे तो सड़क दुर्घटना में पिता-पुत्री दोनों घायल हो गए। प्रवीण लेखरा तो कुछ समय बाद स्वस्थ हो गए लेकिन अवनी को तीन महीने अस्पताल में बिताने पड़े फिर भी रीड की हड्डी में चोट के कारण वह खड़े होने और चलने में असमर्थ हो गई।
लेखरा ने बताया कि इसके बाद वह बहुत निराशा से भर गई और अपने आप को कमरे बंद कर लिया। माता-पिता के सतत प्रयासों के बाद अवनी में आत्म विश्वास लौटा और अभिनव बिन्द्रा की बायोग्राफी से प्रेरणा लेकर वह निशानबाजी करने लगी।