शहर में जगह-जगह गाय की पूजा-अर्चना और आरती हुई। गौ भक्तों ने गाय के खुरों की पूजा कर पंचामृत से अभिषेक किया। वहीं गाय का शृंगार कर उसे नए कपड़े भी धारण करवाए। मुख्य आयोजन राजधानी जयपुर के आराध्य गोविंददेवजी मंदिर में हुआ। यहां गोपाष्टमी उत्सव का आयोजन हुआ। वहीं शहर के गोशालों में विशेष आयोजन हुए, गाय के पूजन के लिए सुबह से ही लोगों की भीड़ उमड़ी। शहर में जिन घरों में गाय है, वहां भी सुबह से ही गाय के पूजन के लिए महिलाएं पहुंची और गाय का पूजन किया।
गोविंददेवजी मंदिर में महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में श्रृंगार झांकी के बाद चांदी की गौमाता का वेदमंत्रोच्चारण के साथ पंचामृत अभिषेक कर विधिवत पूजन किया गया। इसके बाद गाय का पूजन हुआ, जिसमें गाय के खुरों का पंचामृत अभिषेक कर शुद्ध जल से अभिषेक किया गया। गाय की पूजा-अर्चना के बाद आरती की गई और नए वस्त्र ओढ़ाए गए। मंदिर में गाय के पूजन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। गाय का पूजन करने के लिए सुबह से ही महिलाओं की भीड़ लगी।
गोविंददेवजी मंदिर में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में ठाकुरजी को केसरिया रंग की नटवर वेश पोशाक धारण कराई गई। विशेष अलंकार धारण करा कर आकर्षक शृंगार किया गया। मंदिर में भगवान गोपाल की आकर्षक झांकी सजाई गई।
सांगानेर स्थित श्री पिंजरापोल गौशाला में गोपाष्टमी महोत्सव का आयोजन किया गया है। सुबह से ही श्रद्धालु गौ-पूजन और गो-दर्शन कर रहे हैं। इस अवसर पर ऑर्गेनिक उत्पाद और गौ आधारित वस्तुओं का मेला भी लगाया है। गौशाला में गाय के गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है। श्रीगिरिराज पर्वत की झांकी सजाई गई है। वहीं दुर्गापुरा स्थित गोशाला के साथ हिंगोनिया गौशाला में भी गोपाष्टमी महोत्सव का आयोजन किया गया है। गौशालाओं में सुबह से ही गायों को हरा चारा और गुड़ खिलाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी।
भविष्य पुराण के अनुसार गाय को माता यानी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का वास है, मुख में रुद्र का वास, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगा आदि नदियां और गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं।