हालांकि, महापौर का यह फैसला उन पार्षदों को रास नहीं आ रहा है, जो पत्नी की जगह खुद सक्रिय रहते हैं। वहीं, महापौर धाभाई मानती हैं कि महिला पार्षद बनीं हैं तो उनको बाहर आकर लोगों की समस्याओं को सुनना चाहिए और कार्यालय भी आना चाहिए।
दरअसल, राजधानी में दो नगर निगम बनने के बाद वार्डों की संख्या में भी इजाफा हुआ। 33 फीसदी आरक्षण होने की वजह से 250 वार्डों में से 90 महिला पार्षद हैं। हैरिटेज नगर निगम 100 वार्डों में 37 और ग्रेटर के 250 वार्डों में 53 महिला पार्षद हैं। इनमें से बमुश्किल 10 फीसदी महिला पार्षद ही सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।
पहले आदेश, अब नोटिस
-25 मई को आयुक्त यज्ञमित्र सिंह देव ने महिला पार्षदों के पतियों और रिश्तेदारों के बढ़ते दखल को देखते हुए एक आदेश निकाला। जिसमें लिखा था कि महिला पार्षदों के पति और रिश्तेदार निगम की बैठकों में भाग लेने के लिए अधिकृत नहीं हैं। यह नियम विरुद्ध है।
-पिछले सप्ताह दो पार्षद पतियों ने महापौर कार्यालय में जाकर महापौर से ऊंची आवाज में बात की। उनके फोन से ही निगम अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश की। इसके बाद महापौर ने दोनों पार्षद पतियों को बाहर निकाला और अब यह नोटिस चस्पा करवाया।
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना जरूरी
इस फैसले के पीछे मेरी सोच महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने की है। कई पार्षद पतियों के फोन भी आए और कई तरह की समस्याएं गिनाईं, लेकिन मैंने कहा आप पार्षद को ही भेजिए मैं सब समझ लूंगी। कुछ महिला पार्षद आईं भी थीं और अपने वार्ड संबंधी काम भी करके गईं।
–शील धाभाई, कार्यवाहक महापौर, ग्रेटर नगर निगम