जान-बूझकर ना करें ये काम- उनका कहना कि फिल्मकार का इरादा हमेशा विचार रखना होना चाहिए, ना कि विवाद खड़े करना। जान-बूझकर किसी जाति, वर्ग, समुदाय विशेष को हानि नहीं पहुंचाई जानी चाहिए। यदि कोई विचार रखना हो, तो उसे भी संयमित तरीके से कहना चाहिए। ऐसे में फिल्मकारों से अपेक्षा है कि वे विवेकपूर्ण सिनेमा का निर्माण करें। साथ ही सिंह ने कहा कि फिल्म का विरोध करने वाली करणी सेना के लोगों को भी ‘पद्मावती’ के इतिहास की जानकारी नहीं थी, वे भी इसकी जानकारी के लिए एक बार आए थे, एेसे में यह विरोध भी सही अर्थ में स्पष्ठ नहीं होता।
दृश्य और संवाद में समझदारी जरुरी- तो वहीं फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन वर्सेज नॉम्स ऑफ सोसायटी विषय पर बोलते हुए भीम प्रकाश शर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता के अधिकार से कुछ नियम भी जुड़े हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। नियमों से ही समाज में व्यवस्था बनी रहेगी और उनकी विवेकपूर्ण पालना जरूरी है। जबकि सुदेश बत्रा ने कहा कि फिल्में दर्शकों पर सबसे अधिक प्रभाव छोड़ती हैं, इसे समझते हुए फिल्मकारों को दृश्य और संवाद रचते हुए समझ से
काम लेना जरूरी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए अनुचित नहीं कहा जा सकता। इस सेशन में प्रबोध गोविल, डॉ.
शक्ति सिंह शेखावत, डॉ जगदीश गिरि ने भी अपने विचार रखे। फेस्ट के हनुरोज ने बताया कि फिल्मों की स्क्रीनिंग से पहले सीनियर एक्टर श्रीवल्लभ व्यास को दो मिनट का मौन रखकर ट्रिब्यूट दिया गया।
रियल सब्जेक्ट पर बनने लगी है राजस्थानी फिल्में- जिफ में राजस्थानी सिनेमा पर हुए संवाद में राजीव अरोड़ा, सुरेश मुद्गल, श्रवण सागर और राजेन्द्र गुप्ता ने विचार रखे। श्रवण ने कहा कि इस समय राजस्थानी सिनेमा बदलाव के दौर से गुजर रहा है। साहित्य और रियल स्टोरीज को भी फिल्मों के विषय चुने जा रहे हैं। अब राजस्थानी भाषा को लेकर राजस्थान से शंखनाद होना जरूरी है, जिससे राजस्थानी सिनेमा मुखर हो उठे। राजीव अरोड़ा ने कहा कि सरकार, प्रशासन और दर्शक वर्ग को सामूहिक स्तर पर राजस्थानी भाषा को लेकर प्रयास करने होंगे। संविधान से हमारी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए पिछली सरकार ने भी मजबूती से पक्ष रखा गया था।
वहीं सेशन में राजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलेगी तो यह शिक्षा के जरिए बच्चों तक पहुंचेगी और इसका फायदा फिल्मों को जरूर मिलेगा। सुरेश मुद्गल ने कहा कि राजस्थान से बाहर हमारी भाषा की कद्र है, लेकिन हमारे यहां के लोग ही इस भाषा से मुंह मोड़ रहे है।