उद्घाटन सत्र में मुख्यंमत्री ने कहा कि यह फेस्टिवल जयपुर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की शान है। देश और दुनिया में इसकी चर्चा होती है। लोग इंतजार करते हैं, ऐसे मंच का, जिस पर खुलकर अपने मन की बात कर सकें। मन की बात भी आवश्यक है और काम की बात भी आवश्यक है। नोबेल, बुकर, पुलित्जर, मैग्सेसे और साहित्य एकेडमी जैसे पुरस्कार प्राप्त प्रतिष्ठित लेखकों के शामिल होने से इसका महत्व और बढ़ गया है।
उन्होंने कहा कि हमारे प्रदेश के प्रतिष्ठित लेखक विजयदान देथा, जिनको हम बिज्जी कहते थे, की प्रसिद्ध राजस्थानी कहानियां बातां री फुलवारी के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण किया गया। बिज्जी की कहानियों में राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति और लोक जीवन की झलक दिखाई देती है। बिज्जी ने बोरुंदा जैसे एक छोटे से गांव में रहकर के विश्व स्तर का साहित्य रचा, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की, जो हमारे लिए गौरव की बात है। अंग्रेजी में उनकी कहानियों के अनुवाद से वे अब दुनिया के अन्य पाठकों तक पहुंचेंगे। बिज्जी ने बातां री फुलवारी पुस्तक के माध्यम से राजस्थान के लोक जीवन, लोक संस्कृति, राजस्थान की बातचीत परंपरा, लोक कथाओं, लोक कला और जीवन मूल्यों की धरोहर को संजोने का काम किया।
सत्र में कला, विज्ञान और रचनात्मकता पर की नोट संबोधन मार्कस ड्यू स्टॉय और शुभा मद्गल ने दिया। शुभा मुद्गल ने कहा कि कला में सत्ता या सोपान (हेराककी) नहीं होती। हर प्रकार की कला अलग व विशिष्ट है। हर कला का सम्मान किया जाना चाहिए। कला से ही रचनात्मकता का विकास होता है। इससे पहले जेएलएफ की निदेशक नमिता गोखले, विलियम डेलरिम्पल व संजॉय के रॉय ने भी स्वागत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि जेएलएफ दुनियाभर में अपनी महत्वपूर्ण पहचान बना चुका है। इसमें अब तक 5 हजार से ज्यादा विख्यात वक्ता और 30 लाख से अधिक साहित्य प्रेमी शिरकत कर चुके हैं। इसमें सर्वाधिक तादाद युवाओं की है।