लेकिन यह भ्रम ही रहा है, जो जितना जल्द दूर हो जाए उतना अच्छा है। मशहूर कथाकार चित्रा मुद्गल ने ‘बयान : इन टेस्टिमोनी’ सेबजेक्ट पर बोलते हुए ऐसे राजनेताओं की कथनी और करनी पर कटाक्ष किया।
उन्होंने कहा कि मौजूदा परिवेश में सामाजिक ढांचे से संघर्ष करते हुए अपनी पहचान बनाना महत्वपूर्ण है। हमें इस दिशा में ही आगे बढ़ना चाहिए। इससे न केवल खुद को मजबूत कर सकते हैं, बल्कि समाज और देश को आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
लेखकर नंद भारद्वाज से चर्चा करते हुए मुद्गल ने उन अनछूए पहलुओं को छुआ, जिसने सोसायटी को जकड़ रखा है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यह अनवरत प्रक्रिया है इसलिए खुद को मजबूत करना ही एक विकल्प है।
भीड़ जुटाना जरूरी, पर साहित्य भी उतना ही आवश्यक.. इस बीच उन्होंने लोगों से अनौपचारिक बातचीत में कहा कि इन सम्मेलनों में महज भीड़ जुटाने के लिए फिल्मी हस्तियों को बुलाना बहुत हद तक ठीक नहीं हो सकता।
साहित्य के मंच पर साहित्यकारों का बोलबाला होना जरूरी है। हालांकि, आसानी से भीड़ जुटाने के नाम पर ऐसा किया जा रहा है। READ: 14 जनवरी से लापता युवक का मिला नरमुंड, पत्नी ने भाई और प्रेमी के साथ मिल उतारा मौत के घाट
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