महाशिवरात्रि पर होती थी पतंगबाजी
सवाई रामसिंह (1835-88) शैव मत के अनुयायी थे। लखनऊ प्रवास के दौरान वहां पतंगें उड़ती देखकर उन्होंने पतंगसाजों को जयपुर में बसाया और पतंगबाजी की विधा को वो ही यहां लाए थे। उनके दौर में महाशिवरात्रि पर पतंगबाजी होती थी और शिवजी के चरणों में पतंग अर्पित करने के बाद सवाई रामसिंह तुक्कल उड़ाते थे, जिसमें कि चांदी के घुंघरू बंधे होते थे।
सवाई रामसिंह (1835-88) शैव मत के अनुयायी थे। लखनऊ प्रवास के दौरान वहां पतंगें उड़ती देखकर उन्होंने पतंगसाजों को जयपुर में बसाया और पतंगबाजी की विधा को वो ही यहां लाए थे। उनके दौर में महाशिवरात्रि पर पतंगबाजी होती थी और शिवजी के चरणों में पतंग अर्पित करने के बाद सवाई रामसिंह तुक्कल उड़ाते थे, जिसमें कि चांदी के घुंघरू बंधे होते थे।
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शिवजी के भक्त थे जयपुर के राजारियासत काल में भी आज ही की तरह शिव की महिमा का गुणगाण चारों और होता था। रियासतकालिन राजा भी शिव के परम भक्त थे। वे भोलेनाथ की पूजा बड़ी ही श्रद्धा से करते थे। महाराजा सवाई रामसिंह भी शिवजी के भक्त थे। शिवजी का पूजन करते हुए सवाई रामसिंह द्वितीय।
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जयपुर में प्रसिद्ध हैं शिवजी के ये मंदिरताडक़ेश्वर महादेव, राजराजेश्वर व प्रतापेश्वर (चांदनी चौक), एकलिंगेश्वर (मोती डूंगरी), झाडखंड महादेव (वैशाली), जंगलेश्वर महादेव (बनीपार्क), चमत्कारेश्वर महादेव (झोटवाड़ा रोड), धूलेश्वर महादेव (अजमेर रोड), सदाशिव ज्योतिर्लिंगेश्वर (दिल्ली रोड) सहित शहर के सभी कोनों में बने छोटे-बड़े शिवालयों में भोलेनाथ विराजमान हैं।