पर्यटन अधिकारी रहे गुलाब सिंह मीठड़ी के मुताबिक जयपुर के गंधियों ने मिट्टी की सुगंध को कैद कर इसका इत्र इजाद कर महाराजा को भेंट किया। हरिद्वार जाने वाली जनानी ड्योढ़ी की रानियां व सेविकाएं भी महाराजा के साथ खासा कोठी में निवास करती। महाराजा निवास करते तब कोठी पर संगीनों का कड़ा पहरा रहता। शाम को नृत्यांगनाओं की महफिल सज जाती। खासा कोठी के महत्व को देखते हुए अंग्रेज इंजीनियर एस.जे.टेलरी ने वर्ष 1888 में सिटी पैलेस के बाद दूसरा टेलीफोन कोठी में लगाया। सियाशरण लश्करी के अनुसार फोन लगाने पर 1087 रुपए का खर्चा आया। सन् 1940 में सवाई मानसिंह गायत्री देवी से विवाह कर शाही रेलगाड़ी से खासा कोठी के विमान भवन में उतरे। इस मौके पर नाहरगढ़ से तोपें छूटी और आर्मी ने खासा कोठी में गार्ड ऑफ ऑनर दिया।
खवास बालाबक्स गबन कांड के मामले की वर्ष 1923 में न्यायाधीश शीतला प्रसाद वाजपेयी ने कोठी में सुनवाई की तब खासाकोठी बहुत चर्चित रही। खासा कोठी में रहे अंग्रेज अधिकारी के प्रिय श्वान की मृत्यु पर उसे परिसर में दफनाकर समाधि बनाई गई। सन् 1922 में सवाई मानसिंह ने इसे स्टेट गेस्ट हाउस बनाकर देसी व यूरोपियन भोजन के रसोवड़े बनवाए। स्टेट के शाही भोज भी खासाकोठी में होते रहे। सन्1948 के कांग्रेस अधिवेशन के विशिष्ट मेहमान कोठी में ठहरे। ऐतिहासिक खासा कोठी की इमारत को सवाई राम सिंह द्वितीय ने सन् 1866 में बनवाया। सवाई राम सिंह का इलाज करने लंदन से आए डॉ. सी.एस. वेलंटाइन को रहने के लिए खासा कोठी दी गई। वेलंटाइन के साथ आए स्कॉटिश मिशनरी के परिवारों को मिशन कम्पाउंड में बसाया गया। सन् 1949 में राजस्थान निर्माण के समय कोठी में अस्थाई महकमें खोले गए। सन् 1943 में मिर्जा इस्माइल ने कोठी के बीच से निकलने वाले रास्ते को बंद करवाया।