वर्ष 2014 में तैयार की गई डीपीआर में अंकित है कि परियोजना के लिए 875 करोड़ रुपए लागत की भूमि अवाप्त करनी पड़ेगी। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट के लिए की लागत लगभग 9500 करोड़ रुपए आएगी। लेकिन अब समय निकलने के साथ ही लागत में भी वृद्धि हो गई। इसे देखते हुए ही लागत को कम करने पर विशेष फोकस किया जा रहा है। बढ़ी हुई लागत से परियोजना को मूर्तरूप देने में काफी कठिनाई आएगी।
कॉस्टकटिंग के तहत ही इस पूरे प्रोजेक्ट को एलीवेटेड बनाया जाएगा। पहले डीपीआर में रूट के कुछ हिस्से को अण्डरग्राउण्ड किया जाना प्रस्तावित था। अण्डरग्राउण्ड प्रोजेक्ट की लागत लगभग 550 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया था, जबकि एलीवेटेड का खर्चा 200 करोड़ तक। ऐसे में नई डीपीआर में इस प्रोजेक्ट की सम्पूर्ण लागत को 10 हजार करोड़ से भी कम पर लाने का प्रयास किया जाएगा।
फेज दो के निर्माण के लिए कॉस्ट कटिंग के अलावा अन्य वित्तीय संसाधन भी जुटाए जाएंगे। इसके लिए केन्द्र सरकार से भी फण्ड मांगा जाएगा। हालांकि, मेट्रो प्रोजेक्ट में केन्द्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 50-50 प्रतिशत की होती है।