दरअसल हुआ यों कि सांगानेर विधानसभा क्षेत्र के वार्ड 66, 68, 71 और 91 के लिए प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस नेता दो गुटों में बंट गए। एक गुट ने पूर्व पार्षद धर्मसिंह सिंघानिया, मुकेश शर्मा और कमल वाल्मिकी और टिकटार्थी रतनलाल सैनी की दावेदारी का विरोध किया।
जबकि दूसरा गुट इनके पक्ष में आ खड़ा हुआ। नामांकन के अंतिम दिन तक इन चारों वार्डों के प्रत्याशियों को लेकर दोनों गुट भिड़े रहे। अंतत: पार्टी ने जब सूची निकाली तो इन चारों प्रत्याशियों के नाम गायब हो गए। जिन्हें टिकट मिला, उन्होंने हाथों-हाथ पार्टी सिंबल लेकर अपने नामांकन दाखिल कर दिए।
अब दूसरे गुट ने प्रदेश प्रभारी अजय माकन से इसकी शिकायत की। नतीजतन नामांकन का समय खत्म होने से ऐन पहले पार्टी ने प्रत्याशी बदलकर इन चारों को भी सिंबल थमा दिए। इन चारों ने भी कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल किया। नामांकन पत्रों की जांच हुई तो पता चला कि पार्टी ने बाद में जिन प्रत्याशियों को सिंबल दिए हैं, उनमें तकनीकी खामी छोड़ दी।
फिर क्यों हुई चूक
प्रत्याशी बदलने के बाद नामांकन खारिज होने से कांग्रेस में बवाल मच गया। पार्टी में चर्चा है कि सिंबल देने वाले नेता पुराने और अनुभवी हैं। ऐसे में वह प्रत्याशी बदलने पर सिंबल देने में तकनीकी चूक नहीं कर सकते। मामले को टिकट वितरण को लेकर हुई गुटबाजी और खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है।