समस्याएं बड़ी, पैसा नहीं, कैसे पार पाएंगी दोनों महापौर
परिसीमन के बाद जयपुर के ग्रेटर और हैरिटज नगर निगम को उनका महापौर और उप महापौर मिल गया है। निर्वाचन के साथ ही चारों ने अपनी प्राथमिकताएं भी गिनाई। मगर वर्तमान कोविड की परिस्थितियों में दोनों महापौर की राह कठिन है।

जयपुर।
परिसीमन के बाद जयपुर के ग्रेटर और हैरिटज नगर निगम को उनका महापौर और उप महापौर मिल गया है। निर्वाचन के साथ ही चारों ने अपनी प्राथमिकताएं भी गिनाई। मगर वर्तमान कोविड की परिस्थितियों में दोनों महापौर की राह कठिन है। सबसे बड़ी समस्या है कि पिछले एक साल से निगम अधिकारियों के भरोसे चल रहा था, ऐसे में काम कराने के लिए दोनों महापौर को मशक्कत भी करनी होगी। समस्याओं की बात की जाए तो दोनों ही नगर निगम में इनका अंबार है। अब सवाल उठता है कि आखिर कैसे महापौर इन समस्याओं से पार पाएंगे ? सवाल यह भी कि राजस्व यानि आर्थिक तंगी भी काम की राह में रोड़ा है तो किस तरह इस समस्या का महापौर हल ढूंढ़ पाएंगे ?
जयपुर हैरिटेज छोटी काशी की विरासत को समेटे हुए हैं। यहां अल्बर्ट हॉल, हवामहल, जंतर—मंतर, गोविंदेवजी, आमेर महल, सिटी पैलेस, जलमहल जैसे ऐतिहासिक स्मारक हैं तो जौहरी बाजार, चौड़ा रास्ता, चांदपोल जैसे हैरिटेज बाजार भी इसकी शान हैं। मगर समस्याओं की संख्या ग्रेटर से भी ज्यादा यहां नजर आती है। परिसीमन के बाद हवामहल, सिविल लाइंस, किशनपोल, आदर्श नगर और आमेर का इलाका आता है। वार्डों की संख्या यहां 100 है। ऐसे में महापौर को सभी पार्षदों को साथ लेकर विकास के काम कराना सबसे बड़ी टास्क है। राजस्व अर्जन के संसाधन यहां बहुत कम हैं और खर्चों की फेहरिस्त बहुत ज्यादा है। शहर को साफ रखना यहां सबसे बड़ी टास्क है, क्योंकि यहां के हैरिटेज का निहारने के लिए हर साल लाखों की संख्या में देसी—विदेशी पर्यटक यहां आते हैं।
ग्रेटर में भी समस्याओं का अंबार
ग्रेटर की बात की जाए तो इसका इलाका बहुत बड़ा है। यहां 150 वार्ड और मालवीय नगर, सांगानेर, विद्याधर नगर, बगरू और झोटवाड़ा का इलाका आता है। इतने बड़े क्षेत्र में समस्याओं की संख्या भी सैंकड़ों में हैं। शहर का वीआईपी इलाका भी यहीं आता है, ऐसे में इन समस्याओं को समझने और दूर करने में काफी वक्त लग सकता है। इसके बाद राजस्व अर्जन करना भी महापौर के लिए टेढ़ी खीर है। कोविड की परिस्थितियों के कारण नगर निगम का राजस्व घट गया है। राजस्व के नए अवसर पैदा करके ही महापौर राजस्व को बढ़ा सकती हैं।
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