इस बार लॉकडाउन के चलते मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ नजर नहीं आई। गोविंददेव जी मंदिर में शाम को 5:45 बजे महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में सालिगरामजी को रथ पर विराजमान कर मंदिर के दक्षिण—पश्चिम कोने में स्थित तुलसी मंच पर लाकर विराजमान किया गया। यहां मंत्रोच्चार के बीच पंचामृत अभिषेक कर पूजन किया गया। मंदिर के प्रवक्ता मानस गोस्वामी ने बताया सालिगरामजी व तुलसीजी की चार परिक्रमा करने के बाद सालिगरामजी को चौकी पर विराजमान कर मंदिर की एक परिक्रमा करने के बाद वापस मंदिर के गर्भगृह में विराजमान किया गया। संध्या आरती दर्शन होंगे। शाम को ठाकुरजी को चांदी के पलंग पर मंत्रोच्चार के साथ विधि विधान पूर्वक शयन करवाया गया। उत्सव दर्शन भक्तों को ऑनलाइन ही करवाए गए।
इसी प्रकार सरस निकुंज में शाम को श्रीठाकुरजी राधा सरस बिहारी जू सरकार की पुष्प झांकी के साथ देवशयन एकादशी उत्सव मनाया गया। शुक सम्प्रदायाचार्य पीठाधीश्वर अलबेली माधुरी शरण महाराज के सान्निध्य में सरस परिकर के वैष्णवों ने सामूहिक पदों का गायन किया गया। शयन झांकी के समय सालिगराम भगवान को शयन कराते हुए पौढे रंग महल प्रिय-गौरी…, सुमन सेज पौढे मिल प्यारे…जैसे पदों के गायन के बीच ठाकुरजी को शयन कराया गया।
देवस्थान विभाग के बड़ी चौपड़ स्थित लक्ष्मीनारायण बाईजी के मंदिर में सुबह भगवान लक्ष्मीनारायण का अभिषेक कर नवीन पौशाक धारण करवाई गई। शाम को पूजन के बाद सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले चांदी के पलंग पर श्रीहरि विष्णु को मंत्रोच्चार करते हुए शयन कराया गया। उत्तर भारत की प्रमुख वैष्णव पीठ श्रीगलताजी में पीठाधीश्वर अवधेशाचार्य महाराज के सान्निध्य में देवशयन पूजन करवाया गया। युवराज स्वामी राघवेन्द्र ने बताया कि देव शयनी एकादशी को भगवान् चार माह तक क्षीर सागर में विराजमान रहते हैं। इस वर्ष अधिकमास के चलते यह अवधि 5 माह रहेगी।